1. सफर और मोहोब्बत
पुलिस ट्रेनिंग के दौरान जैसे ही बताया गया कि कल से आपको दो दिवसीय अवकाश दिया जाता है और दो दिन बाद निश्चित समय से वापसी करानी है। सभी रंगरूट बैरकों की तरफ भाग लिये और जल्दी से सबने सामान उठाया जो कि पहले से ही सबका पैक रखा हुआ था। सबको जल्दी से बस घर पहुँचना था। रोहन इन्हीं में से एक था। तीन महीने हो गये थे घर से आये हुये। माँ-पिताजी और भाई-बहन सबके मुस्कुराते चेहरे सामने थे। दौड़ कर स्टेशन पहुँचा और 400 किलोमीटर दूर घर के लिये दो बार ट्रेन बदलनी थी सो तुरन्त ही पहले पड़ाव की ट्रेन में चढ़ गया। इस ट्रेन में सफर मात्र डेढ़ घंटे का था सो जल्द ही अगले पड़ाव के लिये स्टेशन पर पहुँच गया। पता चला ट्रेन दस मिनट में आ रही है। कन्धे से बैग उतारा और बोतल निकालकर पानी पीया। ज्यादा प्यास की वजह से एकदम से ठसका सा लगा और सारा पानी खाँसी के साथ बाहर आ गया। मगर ये क्या सारा पानी सामने गुजर रही एक लड़की पर जा गिरा। लड़की एकदम उखड़ गयी, “बेबकूफ हो क्या?” रोहन सकपका गया और जेब से रूमाल निकालकर लड़की के कपड़े पौंछते हुये बोला,”सॉरी-सॉरी, पता नहीं कैसे ये हो गया एकदम, सॉरी अगेन।” लड़की ने उसे घूर के देखा और बोली,”चलो दूर हटो,रहने दो,कोई बात नहीं।” तभी ट्रेन के आने की अनाउंसमेन्ट हुई और रोहन ने बैग उठा लिया। ट्रेन आयी और वो ट्रेन में चढ़ गया।
रोहन ने ट्रेन की खिड़की से देखा तो उस लड़की के पास एक बड़ा सा बैग था जिसे वो घसीट रही थी। रोहन तुरन्त ट्रेन से उतरा और उस लड़की का बैग उठाकर ट्रेन में चढ़ा दिया। लड़की बोली,”ऐ मिस्टर,क्या मैंनें आपसे मदद माँगी?” रोहन कन्धे उचकाते हुये बोला,”जी हम तो जनता के मददगार हैं और आप जनता हो, तो हम आपकी सेवा में तत्पर हैं।”
लड़की ट्रेन में चढ़ते हुये बोली,”अच्छा जी, तो और भी जनता है बाहर, जाईये मदद कीजिये।”
रोहन-ठीक है, जैसे ही कोई जरूरतमंद दिखेगा, हम पहुँच जायेंगें।
ट्रेन चल पड़ी थी। लड़की अपनी सीट पर बैठ गयी और रोहन खड़ा होकर फोन चलाने लगा। तभी लड़की ने रोहन को आवाज दी,”ओ मददगार जी,इधर आईये।”
रोहन-जी बोलिये।
लड़की ने अपनी सामने वाली सीट पर इशारा करते हुये कहा-यहाँ बैठ जाइये।
रोहन-जी नहीं, मैं ठीक हूँ।
लड़की-बैठ जाइये, वो सीट भी मेरी ही है। मेरे भईया साथ आने वाले थे मगर लास्ट टाइम में कोई काम फंस गया तो नहीं आ पाये। तो कोई और बैठे उससे अच्छा आप ही बैठ जाइये।
रोहन-ओह, तब ठीक है। (और बैग उतारकर बैठ गया)
लड़की-आपकी सीट कहाँ है बैसे?
रोहन-अरे मेरे पास टिकट भी नहीं है। मेरी छुट्टी पक्की नहीं थी इसलिए बुक नहीं की। अब हो गयी तो चला आया।
लड़की-और टी.टी. ने पकड़ा तब?
रोहन-रिक्वेस्ट कर लूंगा, तीन महीने बाद घर जा रहा हूँ बस दो दिन के लिये। तो शायद पिघल जाये।
लड़की-ओह, आप आर्मी में हो?
रोहन-नहीं जी पुलिस में हूँ और अभी ट्रेनिंग पर ही हूँ।
लड़की- अरे आपको बातों-बातों में थैंक्स कहना भूल गयी सामान चढ़ाने के लिये।
रोहन- मैं भी एक बार फिर से माफी चाहता हूँ वो पानी गिराने के लिये।
लड़की बस मुस्कुरा के रह गयी फिर उसने अपने बैग से ईयरफोन निकालकर कानों में लगा लिये और फोन में कुछ देखने लगी। रोहन ने भी ईयरफोन लगाये और गाने सुनने लगा। खिड़की के पास वाली सीट पर बैठकर पीछे की ओर खेत-खलिहान,पेड़,नदी,तालाब भागते देखना बहुत अच्छा लगता है उसे। गानों की धुन और माहौल में वो लगभग खो सा गया। ठंडी-ठंडी हवा में जाने कब आँख लग गयी। आँख तब खुली जब कोई उसे हिला रहा था। वो उठा तो वो लड़की उससे कुछ कह रही थी। ईयरफोन निकालते हुये रोहन बोला,”जी कुछ कहा आपने?”
लड़की-तैयार हो जाइये आप।
रोहन चौंकते हुये-किसलिये?
लड़की-वो देखिये टी.टी. आ रहे हैं, आपको रिक्वेस्ट जो करनी है।
रोहन ने देखा तो पिछली सीट पर टी.टी. चेकिंग कर रहा था। वो इत्मीनान से बैठ गया। टी.टी. जैसे ही रोहन के पास आया। लड़की ने टिकट बढ़ा दी।
टी.टी.- दोनों सीट आपकी हैं?
लड़की-हाँ जी, हम साथ ही हैं।
टी.टी. आगे बढ़ गया।
रोहन-आपने तो एहसान कर दिया मुझपर।
लड़की-अरे कोई नहीं, जो इन्सान बिना मदद माँगें मदद कर दे,उसके लिये इतना तो बनता ही है।
रोहन-थैंक्स, मेरा नाम………
रहने दीजिये,”लड़की ने बीच में हो टोक दिया।”
रोहन-क्यूँ क्या हुआ?
लड़की-अब आप अपना नाम बतायेंगे, फिर मैं अपना, फिर आप अपने बारे में बतायेंगे और मैं अपने बारे में, फिर हम और बहुत सी बातें करेंगें और एक-दूसरे को जानने की कोशिश करेंगे फिर नम्बर एक्सचेंज होंगें और ये छोटी सी मुलाकात जाने कहाँ पहुँचेगी।
रोहन-हे भगवान, क्या हो आप? इतना कुछ कैसे सोच लेती हो?
लड़की-मैं तो ऐसी ही हूँ, एक कदम आगे चलती हूँ।
रोहन-कभी-कभी आगे चलने वाले, बहुत से लोग पीछे छोड़ जाते हैं।
लड़की-जो साथ नहीं चल सकते बेहतर है पीछे छूट जायें।
लड़की काफी हाजिर जबाब थी,पर रोहन भी कहाँ हार मानने वाला था।
रोहन-ऐसे तो जिन्दगी में अकेली रह जाओगी।
लड़की-तो क्या हुआ, अकेले भी जीवन कट सकता है।
रोहन-कट सकता है,जीया नहीं जा सकता।
लड़की-तो जरूरी तो नहीं सब जीना ही चाहे, क्या पता कुछ लोग काटना ही चाहते हो।
रोहन-हो सकता है, मगर आप मुझे जीवन काटने वाली तो नहीं लगती।
लड़की-अच्छा जी, तो कैसी लगती हूँ मैं आपको?
रोहन-बता दूँ?
लड़की-बिल्कुल।
रोहन- आपके बैग को देखकर लगता है,आपने जल्दबाजी में पैकिंग की है क्योंकि बैग बहुत बड़ा है और सामान कम है। इसका मतलब ये हो सकता है आप अकेले जाने के लिये जल्दबाजी में निकली हो और हो सकता है भाई से झगड़ा भी हुआ हो क्योंकि आप महत्वाकांक्षी हैं तो अकेले आना चाह रही हो और भाई साथ आना चाह रहे हो। इसी उधेड़बुन में आप स्टेशन पर एकदम से मेरे आगे आ गयी थी और प्रारंभ में गुस्से में भी थी। मेरी बालों की कटिंग देखकर आपको लगा मैं आर्मी में हूँ और मेरा हेल्पिंग नेचर देख आपको मैं सही लड़का लगा,इसलिये आपने मुझे ये सीट ऑफर की और……..
“अरे रूकिये-रूकिये, पूरी जन्म कुण्डली बताओगे क्या,” लड़की ने फिर बीच में रोक दिया।
रोहन-तो बताइये,ठीक कहा या नहीं?
लड़की-बहुत सी बातें सही हैं इसमें। आई एम इम्प्रेसड।
रोहन-थैंक यू।
और बापस अपना ईयरफोन लगा लेता है। इस बार उसने अपनी आँख बन्द की और दो-तीन बार धीरे से देखा तो वो लड़की मुस्कुरा के उसी को देख रही थी।
रोहन-क्या हुआ?
लड़की-कुछ नहीं।
रोहन-अरे बताओ भी।
लड़की-क्या बताऊँ?
रोहन-तुम मुझे लगातार देख रही हो और मुस्कुरा भी रही हो, बताओ क्या हुआ?
लड़की-अरे तो देख नहीं सकती क्या तुम्हें?
रोहन-अरे फिर बात बढ़ जायेगी न।
लड़की-तो बढ़ जाने दो।
रोहन-फिर ये छोटी सी मुलाकात जाने कहाँ पहुँचेगी?
लड़की-अच्छा जी, मेरी लाईन मुझपर ही।
रोहन बस मुस्कुरा के रह गया और लड़की ने भी नजरें झुका ली। कुछ स्टेशन नजरें बचाते-मिलाते ही पार हो गये।
लड़की-सुनो अगला स्टेशन ही मेरा है,मेरा बैग उतारने में मदद कर देना।
रोहन-बिल्कुल।
लड़की-और तुम बहुत अच्छे हो,ऐसे ही रहना। ईश्वर ने चाहा तो फिर मुलाकात होगी।
रोहन उसका नम्बर लेना चाहता था पर हिम्मत ही नहीं हुई। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था,बहुत कुछ कहना था पर लब्ज नहीं मिल रहे थे। ट्रेन दुगुनी गति से दौड़ रही थी। तभी ट्रेन धीमें हुयी और वो लड़की खड़ी होकर सामान ठीक करने लगी। रोहन ने उसका बैग उतारा और दोनों प्लेटफार्म की ओर बढ़ गये।
लड़की-अच्छा तो फिर बाय।
रोहन-बाय एण्ड टेक केयर(बस इतना ही बोल पाया)।
लड़की-अपना भी सामान चेक कर लेना।
रोहन-ठीक है।
ट्रेन चलने का इशारा होता है और रोहन ट्रेन में चढ़ जाता है। ट्रेन चल देती है। लड़की भी पीछे मुड़ती है और चली जाती है। रोहन आकर निराश अपनी सीट पर बैठ जाता है और ईयरफोन जेब से निकालता है तो देखता है बैग की साईड पॉकेट खुली हुई है। उसे चेक करता है तो उसमें एक लेडिज रूमाल है और उसपर “दिव्या” लिखा हुआ है और साथ में मोबाइल नम्बर भी है। रोहन को दिव्या की वो बैग चेक करने वाली बात याद आ जाती है। वो बस मुस्कुरा कर बाहर की हंसी वादियों में खो जाता है।
2. सफर और सहभागी
पवन ए.सी. बस में चढ़ा और खिड़की वाली सीट पर बैठा। बगल की सीट खाली थी। लीड लगाकर रेडियो ऑन किया। “मेड इन चाईना” मूवी का “वालम” गाना बज रहा था। गाना अच्छा था पवन उसमें खो गया और फिर उसने अपने फोन में सेलेक्टड गाने वाले फ़ोल्डर में गाना डाल दिया। फिर से ये गाना सुनने लगा। चलती हुयी बस और पीछे की तरफ भागता पर्यावरण पूरे सफर का मजा दे रहा था। तभी बस चौराहे पर रूकी और एक सुन्दर श्यामल सी लड़की बस में चढ़ी। वो पवन के पास आकर खड़ी हो गयी। मगर पवन तो वादियों में मस्त था तो उसे देखा तक नहीं। तभी पीछे सीट वाली ऑन्टी ने पवन के कन्धे पर हाथ मारते हुये कहा,”अरे बेटा सुन भी लो” पवन चेतना में लौटा और पीछे मुड़ा, लीड निकालते हुये बोला,”जी कुछ कहा आपने?”
ऑन्टी-अरे वो लड़की तीन बार आवाज लगा चुकी है,सुन लो उसकी भी।
पवन लड़की की ओर देखते हुये,”ओह सॉरी,मैं सुन नहीं पाया,जी बताइये।”
लड़की-ये मेरा बैग ऊपर रख देंगें जरा?
पवन-हाँ बिल्कुल (लीड समेटता हुआ,बैग को ऊपर रख देता है और बैठ जाता है)।
लड़की भी थैक्स बोलकर बगल में बैठ जाती है। पवन फिर अपनी लीड निकालता है और गाने सुनने लग जाता है।
(थोड़ी देर बाद)
लड़की-सुनिये।
पवन फिर लीड निकालते हुये-हाँ जी।
लड़की-चार्जर है आपके पास?
पवन-हाँ है,पर उसके लिये मुझे उठना होगा, ऊपर बैग में रखा है।
लड़की-प्लीज दे दीजिये,फोन डिस्चार्ज होने वाला है।
पवन खड़ा होकर चार्जर निकालता है और उसका फोन चार्जिंग पर लगा देता है।
लड़की-थैंक्स।
पवन मुस्कुराकर फिर लीड निकालता है और गाने सुनने लग जाता है।
(थोड़ी देर बाद)
लड़की-सुनिये।
पवन लीड लपेटकर जेब में रखते हुये-हाँ बोलिये।
लड़की-आप क्या सुन रहे हैं?
पवन-गाने….।
लड़की-वो मेरा तो फोन चार्जिंग पर है तो मैं बोर हो रही हूँ। क्या आप लीड का एक सिरा मुझे दे सकते हैं,मैं भी गाने सुन लूँगी।
पवन-आप मेरे फोन से गाने सुन लो, मैं बस ऐसे ही बैठ लूँगा।
लड़की-अरे आप तो नाराज लग रहे हैं।
पवन-नहीं,नहीं सच में। लो, ले लो।
लड़की-रहने दीजिये,आप सुन लीजिये।
पवन-पक्का? मैं सुन लूँ?
लड़की-हाँ सुन लो।
पवन लीड निकालकर फिर लगाता है।
(थोड़ी देर बाद)
लड़की के बोलने से पहले ही पवन-हाँ बताइये।
लड़की-मैंनें तो कुछ नही कहा।
पवन-पर कुछ कहना तो होगा आपको।
लड़की-हाँ वो तो है।
पवन-बोलिये।
लड़की-मेरा नाम सबिना है और मैं घर से भागकर आयी हूँ।
पवन चौकंकर फिर से लीड समेटते हुये,”क्या? क्या बोली आप?
सबिना-सही सुना आपने।
पवन-पर भाग क्यों आयी हो?
सबिना अंगुली से धीरे बोलने का इशारा करते हुये,”ऐसे ही अब्बू मेरा रिश्ता तय कर रहे थे और मुझे पढ़ना है आगे,तो मैं भाग आयी।”
पवन-मगर….. मतलब…. किसी को पता नहीं है?
सबिना-नहीं, किसी को बताती तो वो भागने देते?
पवन-अरे पर ये गलत है,तुम लड़की हो। लौट जाओ अपने घर।
सबिना-नहीं मुझे तो लखनऊ जाना है।
पवन-अरे वो तो मुझे समझ आ रहा है,बस लखनऊ ही जा रही है मगर तुम लखनऊ में कहाँ रुकोगी?
सबिना-देखो,मेरा लखनऊ में पीजी में लॉ कॉलेज में एडमिशन हो चुका है। मुझे बस एक हफ्ता काटना है क्योंकि एक हफ्ते बाद हॉस्टल खुल जायेंगें तो मैं वही रह लूँगी।
पवन-अच्छा,तो सही है। फिर तो सैटल ही हो तुम। जब तक हॉस्टल न खुले तब तक होटल में रूक लेना। सही है ये।
तभी बस फूड प्लाजा पर रूकती है। कडक्टर आवाज लगाता है,”बस यहाँ बीस मिनट रुकेगी।”
पवन-कुछ खाना है तुम्हें?
सबिना-नहीं कुछ नहीं।
पवन-तो हटो जरा मैं कुछ नाश्ता कर के आता हूँ।
पवन चला जाता है और पाँच मिनट में ही लौट आता है।
सबिना-हो गया नाश्ता?
पवन-अरे कुछ बढ़िया है ही नही, तो आ गया मैं वापस।
सबिना-अच्छा तो मैं आती हूँ अभी,फोन देखते रहना।
पवन-ठीक है।
सबिना लौटती है तो पवन अपने टिफिन से कुछ खा रहा होता है।
सबिना-तुम्हारे पास टिफिन था, फिर भी बाहर खाना खोज रहे थे?
पवन-हाँ तो क्या हुआ? अपना तो है ही, शायद बाहर कुछ बढ़िया मिल जाये। तुम खाओगी?
सबिना-हाँ घर का तो खा ही सकती हूँ।
दोनों ने खाना खाया फिर बस चल दी।
पवन-तो मेरे हिसाब से तुम्हें फिर भी घर बता देना चाहिए।
सबिना-अरे कोई नहीं। मुझे बस एक दिक्कत है।
पवन-क्या?
सबिना-मैं पैसे कम लायी हूँ घर से,एक हफ्ता होटल में रूकने के लिये पूरे नहीं होंगें।
पवन-ये तो समस्या है।
सबिना-आप कुछ मदद करिये न।
पवन-मैं क्या मदद करूँ?
सबिना-आपका तो अपना घर होगा लखनऊ में?
पवन-अरे मैडम,मैं नौकरी करता हूँ लखनऊ में, किराये के मकान में रहता हूँ।
सबिना-परफैक्ट,मैं भी वहीं रूक जाऊँगी।
पवन-ओ अरे, ये नहीं हो सकता।
सबिना-आपको क्या दिक्कत है?
पवन-अरे मैं तुम्हें जानता तक नहीं हूँ। घर से जाने क्या काण्ड कर के भागी हो?
सबिना-सब तो बताया है तुम्हें। देखो तुम्हें मेरी मदद करनी ही होगी या तो साथ रहने दो या होटल में रूकने के लिये पैसे दे दो।
पवन-अजीब जबरदस्ती है यार। ये भी कोई बात हुयी। खामखा गले पड़ रही हो तुम तो।
सबिना-अच्छा जी, मैं अभी अपने अब्बू को फोन करती हूँ।
पवन-मतलब?
सबिना-मैं अपने अब्बू से कहूँगी, कि आप मेरे शादी कराना चाहते थे न तो मैं अपने प्रेमी के साथ लखनऊ जा रही हूँ और उन्हें बस का नम्बर भी बता दुँगी। फिर देखना लखनऊ पहुँचते ही पुलिस स्वागत करेगी तुम्हारा।
पवन-बाप रे, बड़ी खतरनाक हो यार तुम तो। मैं तो डर ही गया एकदम। देखो मेरे पैर काँप रहे हैं। एक काम करो, करो अपने अब्बू को फोन। करो-करो। मिस्टर आर.पी.गौतम साहब को करो कॉल और उन्हें अब्बू नहीं पापा बोलना। नाटक बन्द करो अब ये। मैं सब जानता हूँ।
सबिना-तुम पापा का नाम कैसे जानते हो?
पवन-तुम जब फूड प्लाजा पर नीचे उतरी थी। तभी तुम्हारे पापा का फोन आया था। लगातार बज रहा था तो मैंनें उठा के बता दिया कि तुम नीचे गयी हो। तब उन्होंनें बताया वो एडवोकेट आर.पी.गौतम बोल रहे हैं। बाकी कहानी तुम बता दो।
सबिना हसते हुये-अरे यार अभी तो लखनऊ का एक घन्टा और बचा है और मेरी पोल खुल गयी। चलो मैं सब बताती हूँ। मेरा नाम ज्योति गौतम है और मैं लखनऊ में अपना लॉ में पीजी कम्प्लीट करने जा रही हूँ। सबकुछ वहाँ तैयार ही है मुझे बस जॉइन करना है। देखो यार चार-पाँच घन्टे का सफर होता है और फोन चार्ज था नहीं। ऊपर से तुम सफर के सहगामी लीड लगा के बैठे थे। कुछ बात ही नहीं कर रहे थे। अगर मैं ऐसे ही बात सुरू करती तो तुम शायद बहुत देर बात नहीं करते। फिर मैंनें नाम चेंज किये और कहानी गढ़ दी। मगर पापा जी ने सब पोल खोल दी।
पवन मुस्कुरा कर-गजब की नौटंकी हो तुम यार। तुम्हारे पापा का फोन न आता तो मैं तो सच में डर जाता।
ज्योति हसने लग जाती है और कहती है,”देखा मस्त टाईम पास हुआ न?”
पवन-हाँ बहुत अच्छे। आगे मत ट्राई करना किसी पर कोई कमजोर दिल वाला ज्यादा घबरा सकता है। चलो अच्छा लगा तुमसे मिलकर। वैसे मेरा नाम पवन है।
ज्योति-तो पवन जी,आप काम क्या करते हैं?
पवन मुस्कुरा कर-वो आप रहने दीजिये। आपसे फिर मुलाकात होगी कभी लखनऊ में तब के लिये भी तो कुछ हो।
ज्योति-बड़ा भरोसा है आपको कि फिर मुलाकात होगी?
पवन-हाँ आप अपना नम्बर जो देकर जाओगी।
ज्योति-अच्छा जी, मैं क्यूँ आपको नम्बर दूँगी?
पवन-क्योंकि आपने मेरा नमक खाया है और नमक का कर्ज तो अदा करना होगा।
दोनों खिलखिला के हस पड़ते हैं। कडक्टर आवाज लगाता है,”आलमबाग लखनऊ वाले उतर लो।”
3. प्रेम का न्यौता
जैसे ही शाम के सात बजे कॉलोनी में एकदम से गुप्प अंधेरा हो गया। ठण्ड के दिन थे तो चारों तरफ फैला सामान समेटती हुयी सुधा अपने उन्नीस वर्षीय पुत्र अभय से बोली,”अभय देखना मोमबत्ती कहाँ रखी है।”
अभय-अरे चारों तरफ तो सामान फैला रखा है,अब इसमें कहाँ मोमबत्ती खोजूँ?
सुधा-तो एक काम कर पड़ोस वाली रीना ऑन्टी से ले आ।
अभय-ठीक है,लेकर आता हूँ।
अभय पड़ोस में पहुंचा और घन्टी बजाई फिर याद आया लाईट तो है नहीं। तो बाहर से ही “ऑन्टी-ऑन्टी” की आवाज लगा दी। अन्दर से एक साया आता सा दिखा और उस साये ने दूर से ही पूछा,”जी,कौन है?
अभय-अरे मैं आपका पड़ौसी हूँ। हमें मोमबत्ती चाहिये थी।
वो साया अन्दर लौट गया और कुछ देर में मोमबत्ती के साथ लौटा।
“ये लीजिये मोमबत्ती और ये माचिस”,साये ने बोला।
अभय ने मोमबत्ती जलाई और जो रोशनी हुयी,उस रोशनी में दमकता चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें और सुन्दर कन्या को वो देखता रह गया। माचिस की तीली जब अंगुली को जला गयी,तब झटकते हुये अभय होश में आया।
कन्या-अरे आप जल गये क्या?
अभय कुछ नहीं बोला। चुपचाप बाहर से ही अपने घर में घुस गया और मम्मी को मोमबत्ती दे दी और कन्या की खूबसूरती के ख्यालों में खो गया।
(अभय के पिता शहर से बाहर नौकरी करते हैं। अभय अपनी माँ के साथ किराये पर रहता था फिर पिताजी ने इस कॉलोनी में मकान ले लिया तो आज ही वो यहाँ आये हैं। सामान खोल ही रहे थे कि लाईट चली गयी।)
तभी सुधा चीखती हुयी बोली,”अभय गेट पर देख कौन है? जाने कहाँ खोया रहता है।” अभय गेट पर जाता है तो वही कन्या एक महिला के साथ, हाथ में टार्च लिये खड़ी थी।
महिला- बेटा मैं रीना ऑन्टी हूँ, मम्मी कहाँ है तुम्हारी?
अभय- नमस्ते ऑन्टी,अन्दर हैं वो। आईये आप।
रीना- नहीं,मम्मी को यहीं बुला दो।
अभय गेट से ही आवाज लगा देता है,”मम्मी,रीना ऑन्टी आपसे मिलने आयी हैं,बाहर आ जाईये।” सुधा बाहर आ जाती है।
सुधा-अरे आप अन्दर आईये।
रीना-अरे अभी अंधेरा भी है और आपका सामान भी सैटल नहीं हुआ है। मैं बस ये कहने आयी थी कि आज आप लोग हमारे यहाँ खाना खा लीजियेगा।
सुधा-अरे पूछने के लिये आपका दिल से धन्यवाद। मुझे बहुत अच्छा लगा पर हम कुछ बना लेंगें।
रीना-अरे आज हमारे बेटे का जन्मदिन है तो प्लीज आज तो आपको हमारे यहाँ ही खाना होगा। सामान अब आप सुबह ही खोलियेगा।
सुधा अभय की ओर देखते हुये बोली,”चलिये हम लोग आते हैं दस मिनट में।
इस दौरान अभय,कन्या को बीच-बीच में देख भी लेता था। कपड़े बदलकर सुधा और अभय,उनके घर पहुंचे। जादा लोग नहीं थे। रीना ने सबसे उनका परिचय कराया तो पता लगा कि रीना के पति व्यवसायी हैं और उनके दो बच्चे हैं, शीतल(कन्या) और डबू। शीतल अठारह साल की थी और डबू बारह साल का। डबू का ही आज जन्मदिन था। केट कटा और सबने खाना खाया। फिर सुधा और अभय घर बापस आ गये। अगली सुबह अभय तैयार होकर कॉलेज के लिये अपनी स्कूटी लेकर निकला तो देखा कि चौराहे पर बैग लिये शीतल खड़ी है। दिन के उजाले में वो और भी खूबसूरत लग रही थी। वो शीतल के पास पहुँचा।
अभय- कहीं जा रही हो शीतल?
शीतल- आपसे मतलब ।
अभय- अरे पहचाना नहीं,मैं आपका पड़ौसी,कल रात हम मिले
“तो क्या करूँ मैं,पड़ौसी हो तो चौराहे पर बात करने का लाइसेंस मिल गया आपको? जाओ अपना काम करो।”शीतल ने बुरी तरह झाड़ दिया।
अभय को ऐसे जबाब की उम्मीद रत्ती भर नहीं थी। वो अपना सा मुहँ लिये निकलता बना और पूरे दिन सोचता रहा, “इतनी सुन्दर लड़की,इतनी बत्तमीज कैसे हो सकती है?” शाम को जब वो घर लौटा तो शीतल अपने घर की छत पर खड़ी थी। एकदम से अभय की नजर उससे मिली,अभय ने नीचे नजर झुका ली और घर में घुस गया। घर में सब सामान सैटल हो चुका था और रीना ऑन्टी भी घर पर ही थी। अभय उनसे नमस्ते कर अपने कमरे में चला गया। ऐसा अब रोज होने लगा,कभी छत पर,कभी शाम को घूमते वक्त,कभी चौराहे पर जब भी अभय की नजर शीतल से मिलती वो ठिठक सा जाता और उस जगह से निकल लेता। रीना और सुधा के बीच घर जैसे सम्बन्ध हो गये थे जैसे वर्षों से बिछड़ी सहेलियाँ मिल गयी हों।
एक दिन शाम को अभय अपने कमरे में लेटा हुआ था। तभी शीतल कमरे में आ गयी।
शीतल-सुनो।
अभय सकपका गया,”तुम, तुम यहाँ कैसे?”
शीतल-मम्मी के साथ आयी थी। ऑन्टी ने तुम्हारे लिये चाय बनायी थी तो मुझसे तुम्हें देने को बोला है, लो चाय।
अभय-रख दो टेबिल पर।
शीतल चाय रखते हुये,”वैसे तुम कर क्या रहे हो इन दिनों।”
अभय गुस्से में-कुछ नहीं। चाय उठाता है और छत पर निकल जाता है। छत पर जाकर एक कोने में चाय पी रहा होता है और सड़क की तरफ देख कर कुछ सोच रहा होता है। तभी शीतल छत पर आ जाती है।
शीतल- ये सुषमा कौन है,अभय बाबू?
अभय- तुमने मेरा फोन देखा? बड़ी बत्तमीज हो तुम और उसके हाथ से फोन छीन लेता है।
शीतल- अरे खुद ही फोन खुला छोड़ आये थे। उसपर सोना,बाबू लिखकर मैसेज आया तो मैंनें सोचा बता दूँ और तुम मुझे ही बत्तमीज कह रहे हो।
अभय- हाँ बत्तमीज तो हो तुम।
शीतल- और क्या बत्तमीजी की मैंनें?
अभय- उस दिन चौराहे पर कितना कुछ कहा था बिना बात के मुझसे।
शीतल- उसके लिये सॉरी। अब तुम ये बताओ सुषमा कौन है?
अभय-अरे वाह,बेइज्जती सड़क पर करो,सॉरी घर पर बोल दो। ये अच्छा है।
शीतल-अब इतना भी क्या बुरा मान रहे हो। छोड़ो भी।
अभय- हाँ मैं छोड़े बैठा हूँ। हमारे घर के लोगों के सम्बन्ध अच्छे होंगे,हमारे नहीं हो सकते। तुम जाओ अब।
शीतल- यार बहुत गुस्से वाले हो तुम तो। इतनी सी बात पर सम्बन्ध सुरू होने से पहले ही खत्म कर दिया।
अभय- तुम जा रही हो या मैं चला जाऊँ?
शीतल- ठीक है,मैं ही जा रही हूँ पर ये तो बता दो ये सुषमा कौन है?
अभय- प्रेमिका है मेरी। बस ठीक है(गुस्से में कहता है)।
शीतल- पक्का प्रेमिका है?
अभय- क्यों दिमाग खराब कर रही हो तुम?
शीतल(मुस्कुराते हुये)- नहीं वो कहीं-कहीं मैसेज में थैंक्स भाई भी लिखा है न इसलिये पूछा था।
अभय को हल्की सी हसी आ जाती है। दोनों एकटक एक दूसरे को देखते रह जाते हैं।
अभय- वो कजिन है मेरी,मजाक करती रहती है मुझसे।
शीतल- पक्का कजिन है।
अभय- हाँ पक्का, चाहे तो मम्मी से पूछ लो।
शीतल- और प्रेमिका कौन है?
अभय- अभी तक कोई नहीं है।
शीतल- अच्छा, कोई नहीं है?
अभय- नहीं……।
शीतल- होगी भी कैसे,डरपोक जो हो।
अभय- कैसे डरपोक हूँ?
शीतल- छिपे से क्यों रहते हो?
अभय- उसे शर्म भी कहते हैं।
शीतल-अच्छा सुनों, उस दिन ऐसे ही मजाक में वो सब बोल दिया था। मैं मजाक खत्म करती उससे पहले ही तुम चले गये और तबसे मिल ही नहीं रहे थे। तो प्लीज मुझे माफ कर दो।
अभय-ऐसे कौन मजाक करता है यार। मैं पता है सोच रहा था इतनी सुन्दर लड़की बत्तमीज नहीं हो सकती,इसकी तो फैमली भी इतनी बढ़िया है और जाने क्या-क्या।
शीतल-चलो अब माफ करो मुझे।
अभय-कर दिया।
तभी रीना आवाज लगाकर शीतल को बुलाती है।
शीतल- अच्छा चलती हूँ मैं।
अभय- ठीक है।
शीतल- क्या मैं वाकई बहुत सुन्दर हूँ?
अभय- अरे तुम्हें तो मैं बस देखता ही रह जाता हूँ,उस रात भी अंगुली तुमसे नजर न हटने की वजह से जली थी।
शीतल हसते हुये-एक बात बताऊँ तुम्हें, तुम भी बहुत हैण्डसम हो और मेरा कोई बॉयफ्रेंड भी नहीं है। और फिर मुस्कुराती हुयी चली जाती है। अभय प्रेम के न्यौते को स्वीकार कर बस ख्यालों में खो जाता है।
4. अंतिम दर्शन
सुबोध को जैसे ही पता चला ताऊ जी की तबियत खराब है। उसने कुशल को फोन किया। कुशल सुबोध का बचपन का मित्र था और दोनों में दांत काटी रोटी जैसी दोस्ती थी। कुशल ने फोन उठाया और सुबोध बोला, “कहाँ है तू?”
कुशल- दुकान पर हूँ।
सुबोध- तू तुरन्त मंगलम् अस्पताल जा और देख छोटू का फोन आया था। ताऊ जी की तबियत खराब है, वहीं ले गये हैं। जल्दी जा और मुझे वहाँ के हालात बता।
कुशल- अच्छा, तू घबरा मत, मैं तुरन्त जाता हूँ।
और फोन कट गया। सुबोध सीधा अपने बॉस के कैबिन में पहुँचा और बोला, “सर मुझे छुट्टी चाहिये, मेरे ताऊ जी की तबियत खराब है।”
बाॅस- मगर तुम्हें तो दो दिन में वो रिचर्डस वाली मीटिंग अटैन्ड करनी है।
सुबोध- देखिये सर, आप नहीं जानते। मेरे ताऊ जी मेरे लिये क्या है? प्लीज सर।
बॉस- पर ये बताओ, अभी कौन सी फ्लाईट मिल जायेगी तुम्हें भारत की। जाओगे कैसे?
तभी सुबोध का फोन बजता है और फोन कुशल का था। सुबोध झट से फोन उठाता है और बोलता है।
सुबोध- हाँ, क्या हुआ? कैसे हैं ताऊ जी?
कुशल- यार, वो तो………।
सुबोध- क्या वो तो? क्या हुआ? ठीक से बता न, हकला क्यों रहा है?
कुशल- ताऊ जी नहीं रहे भाई।
सुबोध लगभग पीछे दरवाजे से टकरा सा गया। बॉस ने आकर उसे सम्हाला। ठीक हो तुम? सुबोध क्या हुआ? बॉस ने फोन हाथ से लेते हुए पूछा। सुबोध जमीं पर बैठ चुका था। बांस ने फोन पर बात की।
बाॅस- हैलो, मैं सुबोध का बाॅस बोल रहा हूँ, क्या हुआ?
कुशल- सर वो सुबोध के ताऊ जी नहीं रहे। प्लीज सर उसे सम्हाल लीजियेगा। मैं और चीजें देखता हूँ।
बाॅस- हे भगवान, आप चिन्ता न करें। मैं सुबोध के साथ हूँ और फोन कट गया।
सुबोध उठा और धीरे से अपनी टेबिल की ओर बढ़ गया। बाॅस पीछे- पीछे आया। सुबोध ने कहा, “सर मैं ठीक हूँ, कुछ देर के लिये अकेला छोड़ दीजिये।” और कुर्सी पर बैठ गया। सिर पीछे की तरफ लटकाये, आँखों में आँसू और कहीं खो गया। 8 साल का था सुबोध और तभी पिताजी की मृत्यु एक दुर्घटना में हो गयी और माता जी तो जन्म देते ही चल बसी थी। ताऊ जी किसान थे। ताऊ जी पर एक लड़का था जो उम्र में सुबोध से छोटा था। उसका नाम छोटू था। सुबोध सुबक रहा था। ताऊ जी ने सुबोध को गोदी में उठाते हुये कहा, “पगले क्यों रोता है, तेरा ताऊ जिन्दा है अभी।” और वो दिन और आज का दिन ताऊ जी ने कभी पिताजी की कमी नहीं खलने दी। हर जगह दोनों बच्चों को एक साथ पढ़ाया और जहाँ भी जाते अपने दो बेटे बताते। छोटू भी भईया- भईया कह कर उसके पीछे लगा रहता और भी छोटू से बहुत प्यार करता।
बाद में जब कुशल दोस्त बना तो तीनों साथ ही रहते। कुशल की अपनी कपड़ो की दुकान थी उसने वो सम्हाल ली और छोटू अपनी पढ़ाई पूरी कर ही रहा था। सुबोध को एम.टेक करके ऑस्ट्रेलिया में जाॅब का ऑफर आया। ताऊ जी ने तुरन्त हाँ बोल दी। वो ताऊ जी को छोड़ कर जाना नहीं चाहता था पर ताऊ जी अड़ गये और उसको प्रिकाॅसन मनी की मोटी रकम भर के ऑस्ट्रेलिया भेज दिया। सुबोध यहाँ बढ़िया कमाने लगा था मगर ताऊ जी की सेवा न कर पाने का अफसोस हमेशा रहता था। छोटू को समझाता रहता था। कुशल से हाल- चाल लेता रहता था पर दिल उसका ताऊ जी में ही रहता था। कुछ देर में बाॅस आया और बोला, “कि सुबोध तुम घर जाओ आज, आराम करो और कोई भी दिक्कत हो मुझे बताना।” सुबोध उठा और ऑफिस से निकल गया। अपनी कार में बैठा और घर की ओर चल दिया। कितना कुछ दिमाग में चल रहा था। तभी कुशल का फोन आया। सुबोध फोन उठाता है।
कुशल- ठीक है तू?
सुबोध- हाँ, तू बता वहाँ क्या चल रहा है?
कुशल- कुछ नहीं, छोटू रो रहा है लगातार और हम लोग अर्थी की तैयारी कर रहें हैं।
सुबोध(टूट गया, रोते हुये बोला)- मैं उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाऊंगा। छोटू को सम्हाल लियो यार।
कुशल- तू इतना मत सोच, मैं हूँ यहाँ और मैं तुझे वीडियो काॅल कर लूंगा और फोन कट जाता है।
सुबोध अकेला कमरे में ताऊ जी की फोटो लिये बैठा है और अतीत में खोया है। कुर्ता- पजामा में ताऊ जी आँखों के सामने घूम रहे हैं। कभी डाँटते, कभी गोदी में बैठाते तो कभी हुक्का पीते दिख रहे हैं। उसको मैट्रिक पास करने पर सीने से लगाना याद आ रहा था और पूरे गाँव में खुद मिठाई बांटी थी। उनका वो पीठ थपथपाना और शब्बास बेटा कहना, कानों में गूंज रहा था। तभी कुशल की वीडियो काल आता है और ताऊ जी को जाते हुये वो बस बेबस देखता रह जाता है, अश्रुधारा अब भी चल रही है और यादें तो ताउम्र रहेंगी ही।
5. गुरू और अम्मा
कुछ घटनायें जीवन में ऐसी घटती हैं जो बस याद रह जाती हैं। उन्हें बस सुनकर ही लगता है कि वक्त हमेशा ही एक सा था या है बस किरदार बदल जाते हैं। परिस्थितियाँ वही होती हैं बस नया रूप ले लेती हैं। दिक्कतें वही होती हैं बस आधुनिक हो जाती हैं। लोग बदल जाते हैं बस नजरिये वही होते हैं। आपको यकीं न हो तो गौर कीजियेगा कभी, ये सब साफ नजर आता है।
बात मोक्ष की नगरी बनारस की है। गुरू सातवीं कक्षा में पढ़ता था और बहुत ही उदार लड़का था। वैसे तो उसका नाम दिनेश था मगर वो बड़ी ही ज्ञानी जैसी बातें करता था तो लोग उसे गुरू कहने लगे और यही नाम पड़ गया। माँ से गीता,रामायण सुन के बड़ा हुआ था और बनारस के घाटों पर पला था तो धार्मिकता कूट-कूट कर उसमें समाहित थी। वो संतों के बीच बैठता और अपने ज्ञान को बढ़ाता। गुरू के पिता सिंचाई विभाग में कार्यरत थे और गुरू कभी-कभी उनसे भी ज्ञान की बातें करता तो वो बड़े प्रफुल्लित हो जाते। रोज जब गुरू विद्यालय जाता और माँ टिफिन रखती तो गुरू उसमें से आधा खाना किसी भी फकीर को खिला देता। ये उसका रोज का ही नियम था और माँ को भी ये पता था इसलिये वो खाना ज्यादा रखती थी।
एक दिन जब गुरू विद्यालय जा रहा था तो उसने एक बुढ़िया को घाट पर बैठे देखा। गुरू उसके पास गया और बोला, “अम्मा खाना खाओगी?” बुढ़िया ने हाथ आगे कर दिये। गुरू समझ गया इन्हें दिखायी नहीं देता। गुरू ने अपने हाथ से खाना खिलाया और बोला अब मैं चलता हूँ अम्मा। अम्मा ने पानी मांगा। गुरू एक बोतल खोज के पानी दे गया और चला गया। अगले दिन फिर अम्मा वही मिली और गुरू ने खाना खिला दिया। अब ये रोज का हो गया। गुरू रोज अम्मा को खाना खिलाता और अम्मा बहुत आशीष देती। गुरू ने ये बात अपनी माँ को बताई तो माँ ने शाम को गुरू को खाना लेकर भेजा मगर अम्मा ने मना कर दिया कि मैं एक ही वक्त खाती हूँ बेटा। रोज अम्मा को खाना खिलाने पर बात भी होती तो गुरू को पता चला कि अम्मा के दो बेटे हैं पर आँखों की रोशनी जाने पर कोई देखने वाला नहीं है इसलिये यहाँ घाट पर छोड़कर चले गये हैं।
गुरू ने कहा, “मैं बड़े मन्दिर के स्वामी जी से बात करूंगा और वो पुलिस को बतायेंगे सारी बात। पुलिस आपके बेटों के होश ठिकाने लगायेगी।” अम्मा रोकती हुई बोली,”बेटा जो पाल सकते वो छोड़ते क्यों,जबरदस्ती उनके पास जाने का क्या मतलब? अब मैं गंगा मैया की शरण में आ गयी हूँ और तुझे भेज दिया है मैया ने, मुझे अब कुछ नहीं चाहिए।” अम्मा गुरू के सर पर हाथ फिरा रही थी। गुरू फिर बोला,”तो अम्मा आप मेरे यहाँ चलो, मेरी माँ बहुत अच्छी है।” अम्मा बोली,”तेरे यहाँ ही तो हूँ पगले, ये बनारस तेरा नहीं है?” गुरू अम्मा की बात समझ गया और पानी की बोतल देते हुये बोला,”ठीक है अम्मा फिर मैं चलता हूँ, कल मिलूंगा।” अम्मा ने आशीर्वाद की झड़ी लगा दी।
गुरू और अम्मा का रिश्ता ही अलग हो गया था उस एक माह में। गुरू मेलों के बारे में बताता, सेठों के बारे में, दान के बारे में और गीता,रामायण भी सुनाता। छुट्टी वाले दिन तो तीन घंटें तक अम्मा से बातें करते रहता। उस बुजुर्ग महिला को भी जैसे जीने की आस मिल गयी थी। वो उसका इन्तजार करती रहती और किसी से कुछ न लेती। कहती मेरा गुरू आ रहा होगा, उसी के हाथ से खाऊंगी।
एक दिन अम्मा खाना खा के बोली,”गुरू गंगा मैया किस तरफ हैं?” गुरू बोला,”सामने ही तो हैं।” तो वो अम्मा खड़ी हुई और सामने चलने लगी। गुरू बोला,”कहाँ जा रही हो अम्मा?” अम्मा बोली,”आज नहाऊंगी,बहुत दिन हो गये नहाये हुये।” गुरू बोला,”मैं चलता हूँ साथ।” अम्मा बोली,”नहीं,तू रहन दे, मैं नहा लुगीं और सुन तू अब खानों मत लाईयों। अपनों ख्याल राखियों और ईश्वर तुझे खूब कामयाबी दे, हमेशा खुश रह और जैसा है वैसा ही रह।” गुरू सुनता रहा क्योकिं खाने वाली बात को छोड़कर ये सब तो अम्मा रोज ही कहती थी। अम्मा गंगा मैया में उतरी और गुरू के देखते-देखते ओझल हो गयी। गुरू न चीख पाया न कुछ समझ पाया। काफी देर वहाँ खड़ा रहा और आँखों से आँसू टपकते रहे। फिर घर आकर माँ को सब बताया और माँ से लिपटकर खूब रोया।
कालान्तर में गुरू बहुत बड़ा आदमी बना और हमेशा ही लोगों की मदद करता रहा। मगर अम्मा आज भी उसे याद आती है। औलाद कभी माँ-बाप के समझौतों को नहीं समझ सकती।
~ सुमित सिंह पवार “पवार”