डॉ. कन्हैयालाल गुप्त द्वारा लिखी गईं कुछ लघुकथाएँ पढ़िए।
१) अंगुठी
मोहन के ससुर ने सगाई में अपनी बेटी राधा को पहनाई गयी अंगुठी वापस करते हुए अनाप शनाप कह रहे थे। इसका कारण यह था कि जब राधा की शादी तय की तब मोहन के घर वालों ने देखा कि राधा सुन्दर है, एम ए पढ़ी लिखी है लेकिन राधा के पिता सरकार के किसी महकमे में वरिष्ठ लिपिक थे। राधा चार बहनों में सबसे छोटी थी। तीनों बहनों की पहले ही विवाह हो चुका था। सेवा निवृत्ति के उपरांत घर की सारी व्यवस्थाएँ पिता की अस्वस्थता के कारण राधा ही संभाल रही थी, इस छूट का लाभ पाकर काफी स्वछंदता आ गयी थी, उसके पिता भी चाहते थे कि कोई ऐसा वर मिलता जो जमाता बनकर जीवन के अंतिम दिनों का निर्वाह करता। किन्तु परिस्थितियां विपरीत थी। मोहन अपने पिता का इकलौता पुत्र था उसकी चार बहनें थी लेकिन पिता ने पत्नी की मृत्यु के बाद सबकी विवाह करना ही ठीक समझा था। जब मोहन और उसके पिता को राधा और राधा के पिता के विचारों का पता चला तो वे बिचलित हो गया और तब मोहन ने राधा और उसके पिता माता को अटपटा जबाब बात बात में देने लगा। उसके इस व्यवहार को देखकर स्वछंद हो चुकी राधा ने यह सगाई तोड़ देना उचित समझा। इसलिए राधा के पिता ने सगाई की अंगुठी लौटाते वक़्त कोई लज्जा या अफसोस नहीं था। शायद अनुकूल परिस्थितियों के लिए यही भाग्य को मंजूर था।
२) थैलेसीमिया
गत दिनों पीजीआई, लखनऊ से घर आते समय ट्रेन खुलने के थोड़ी देर पहले एक लड़का और एक लड़की भागे-भागे ट्रेन में चढ़कर हमारी सीट पर आकर बैठ गये। लड़के के हाथ में काले पालीथीन में खाने वाली कोई सामग्री थी। दौड़ कर ट्रेन पकड़ने से दोनों पसीने से सन गये थे। जिससे लड़के का जुराब काफी बदबू दे रहा था। हमलोग भी पीजीआई लखनऊ घर आ रहे थे। लड़के ने हमलोगों को देखा तो आश्चर्यजनक नेत्रों से देखने लगा और पूछा कि क्या आप लोग भी पीजीआई से आ रहे हैं तो हमने भी पूछा कि तुम दोनों भी वही से आ रहे हो क्या तो मैंने पूछा किसको क्या हुआ है क्योंकि दोनों स्वस्थ दिख रहे थे। तब लड़के ने बताया कि उसके बहन को थैलेसीमिया नामक बीमारी हुई है। मैंने कहा एनीमिया तो बीमारी होती है थैलेसीमिया तो नहीं सुना क्योंकि बीस वर्षों पहले मेरी भाभी को एनीमिया हुआ था और वह शीघ्र ही चल बसी थी तो लड़के ने गूगल पर सर्च कर थैलेसीमिया बीमारी दिखाया तो मैंने एनीमिया को दिखाया तो पता चला कि थैलेसीमिया नामक बीमारी उसी का गम्भीर रूप है। मैं सोचता रहा कि सोलह वर्ष की किशोरी को इतना गंभीर आनुवांशिक बीमारी कहा से हो गयी। इसके इलाज के तौर पर प्रत्येक दो या तीन महीने में खून चढ़ाना पड़ता है। ऐसे कोई कितने दिनों तक जीवित रहेगा। ईश्वर उसके प्राणों की रक्षा करें।
~ कहानीकार- डॉ. कन्हैयालाल गुप्त “किशन”
आर्यचौक- बाज़ार भाटपार रानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश