बरगद के पेड़ के नीचे बने पंचायत मैदान में सभी गांव वाले एकत्रित हो चुके थे। मैदान खचाखच भर चुका था। कुछ लोग अभी भी आते जा रहे थे। जब सब एकत्रित हो चुके तो गांव के मुखिया ने पंचो को बैठने का इशारा दिया। पंच बैठ गए। मुखिया ने शोरगुल कर रहे बच्चों, औरतों, बूढ़ों और आदमियों से शान्त होने का निवेदन किया। अब मैदान में सन्नाटा पसर गया। लोगों को शांत कराकर मुखिया ने पंचो से कहा – ‘पंचों! पंचायत शुरू की जाए?’ इस पर सभी पंचों ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए एक स्वर में कहा- ‘हाँ हाँ! बिल्कुल शुरू की जाए।’ मुखिया ने पंचायत को शुरू करते हुए कहा – रामदीन की भाभी शकुन्तला पर ये आरोप है कि उसने अपनी देवरानी सुमित्रा के बच्चे को खिलाने के बहाने से अपने हाथों से गला दबाकर मार डाला। पंचायत में बैठे सभी लोगों के बीच आपस में खुसर-पुसर करने लगे। इस पर मुखिया ने लोगों से शान्त रहने का आग्रह किया और मामले को आगे बढ़ाया।
रामदीन की भाभी शकुन्तला के जो औलाद हुई थी। वह कुछ ही महीनों में किसी बीमारी से मर गयी। डॉक्टर ने चेकअप किया और बताया कि वह अब दुबारा कभी मां नहीं बन सकती। वह बांझ हो चुकी है। इतना सुनकर शकुन्तला के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके तो काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गयी थी। रामदीन अभी छोटा था। उसने हौसला रखा और खुद को सम्हाला। उसने रामदीन को ही अपनी औलाद समझकर उसे पाला। उसकी शादी अपने ही एक रिश्तेदार की बेटी से करा दी। रामदीन की जिससे शादी हुई उसका नाम सुमित्रा था। सुमित्रा बहुत सुंदर थी। उसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। उसे अपनी सुंदरता पर बड़ा गुमान था। जब वह पैरों में पायल पहनकर और महावर लगाकर चलती थी तो करोङों कामिनी उस पर न्योछावर होने को तैयार थीं। वह शहर में रहकर पढ़ी थी। सुमित्रा खुले विचारों वाली लड़की थी। दिन गुजरे और सुमित्रा ने एक लड़के को जन्म दिया। लड़के के जन्म के समय सुमित्रा अपने पीहर में ही थी।
एक दिन सुमित्रा के पीहर से रामदीन के पिता छक्कीलाल बाबू के यहां संदेशा आया कि वे सुमित्रा को लिवा ले जाएं। इस पर छक्की बाबू ने अपने बड़े बेटे रामसुखलाल को सुमित्रा के पीहर भेजना चाहा लेकिन रामसुखलाल खेतों के काम में व्यस्त होने के कारण शहर में ही कुछ दिन रुका रहा। जिससे रामदीन को ही जाना पड़ा। रामदीन चार दिन ससुराल में रहने के बाद सुमित्रा को लिवा लाया। रास्ते में बारिश भी होने लगी थी लेकिन दोनों सकुशल घर पहुंच गए। घर पहुच कर रामदीन खेतों की ओर चला गया और सुमित्रा दैनिक कार्यों में लग गयी।
शकुन्तला ने बच्चे को ज्योंहि गोदी में खिलाने के लिए उठाया तो महसूस किया कि बच्चे की देह एक दम ठंडी थी। उसने सोचा रास्ते में बारिश की वजह से होगा लेकिन जब काफी देर तक बच्चा नहीं उठा तो उसने सुमित्रा से इसके बारे में पूछा। सुमित्रा मुन्ना की देह इतनी ठंडी क्यों है ?और यह आँखें क्यों नहीं खोल रहा है? इस पर सुमित्रा ने रोना पीटना शुरू कर दिया कि शकुन्तला दीदी ने मेरे बच्चे को गला दबाकर मार डाला और मुझसे पूछ रही हैं कि मुन्ना के देह इतनी ठंडी क्यों है ? लेकिन शकुन्तला का कहना था कि उसने ऐसा नहीं किया और भला उस बच्चे से उसका क्या बैर जो वह उसे मारेगी बल्कि जब उसने बच्चे को उठाया तब वह पहले से ही ठंडा पड़ा था।
मुखिया की पूरी बात सुनने के बाद पंचों ने दोनों से पूछा कि बताओ हकीकत क्या है? इस पर सुमित्रा तुरंत बोल पड़ी। शकुन्तला दीदी की कोई औलाद नहीं है। अब ये बांझ हो चुकी है। इनको दौलत का लालच है। इनको डर था कि बाबूजी कहीं सारी जायदाद पोते के नाम न कर दें। इस वजह से इन्होंने मेरे बच्चे को मार डाला। शकुन्तला से जब पूछा गया तो उसने घूँघट की आड़ में ही बोला। भगवान जानता है मैंने रामदीन को बच्चे की तरह पाला है। मैंने ही उसकी शादी अपने रिश्तेदारी में करवाई। अगर ऐसा होता तो क्या मैं उसकी शादी करवाती?
पंचों ने दोनो की पूरी बात सुनने के बाद फैसला किया कि ऐसे तो कोई फैसला नहीं हो सकता। एक जुगत है गर दोनों में जो भी स्त्री सच बोल रही है वो निर्वस्त्र होकर इस पंचायत के पांच चक्कर लगाए। उसी की बात पर पंचायत सच मानकर अपना फैसला देगी और दूसरी स्त्री को दोषी मान लेगी। इस पर सुमित्रा ने आव देखा न ताव और वह निर्वस्त्र होकर भरी पंचायत से तुरंत पांच चक्कर लगा कर निकल गयी। अब सभी के नजरें शकुन्तला को शक की निगाहों से देखने लगीं। अब बारी शकुन्तला की थी। शकुन्तला ने अपना पक्ष रखते हए कहा कि मैं ऐसा नहीं कर सकती भले ही पंचायत उसे दोषी ठहरा दे।
पंच ज्योंहि अपना फैसला सुनाने के लिए तैयार हुए त्योंहि पीछे से एक आवाज भीड़ को चीरती हुई आयी। सुमित्रा दोषी है।इसने ही अपने बच्चे को मारा है शकुन्तला निर्दोष है। पंचों ने उस व्यक्ति को आगे आने को कहा और पूछा तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो कि सुमित्रा दोषी है। तब उस व्यक्ति ने कहा कि पंचों मेरा नाम हरदेव है। मैं गांव के अंतिम छोर पर शमशान के पास रहता हूँ और मैं एक गडरिया हूँ। मैने सुमित्रा को बच्चे को मारते हुए देखा है। पंचों ने कहा कैसे? तब उसने बताया।
बात उस दिन की है जब रामदीन सुमित्रा को लेकर ससुराल से लौट रहा था। उस दिन बारिश भी बहुत हुई थी इस लिए मैं अपनी बकरियों को लेकर नहर के टीले पर बकरियों को चरा रहा था। मैने देखा बारिश की वजह से रास्ते में एक छोटी नाली मिट्टी की कटान की वजह से बन गयी थी। जिसे रामदीन ने तो पार कर लिया लेकिन सुमित्रा ने नहीं। सुमित्रा ने सोचा कि उसके पैरों में महावर लगा है जो उसकी भाभी ने बड़े प्यार से लगाया था उसका रंग ना उतर जाए इसलिए उसने बच्चे को नाली में रख कर उसकी छाती पर पैर रख कर नाली को पार कर किया। तभी बच्चे की मृत्यु हो गयी। मैं टीले पर बैठा बैठा यह सब देख रहा था। इसको अपने बच्चे से ज्यादा प्यारा महावर का रंग था। तभी तो इसने निर्वस्त्र होकर पंचायत के चक्कर लगा लिए। जिससे इस पर कोई शक ना करे। भला कोई स्त्री ऐसे भरी पंचायत में निर्वस्त्र होकर कैसे निकल सकती है? जब उसके बड़े बूढे बैठें हों। सुमित्रा के पास अपने महावर के रंग और अपने दोष को छिपाने का आखिरी तरीका था पंचायत में निर्वस्त्र होकर निकलना। जबकि शकुन्तला ने ऐसा नहीं किया क्यों कि उसे अपने दोषी होने से ज्यादा अपनी इज्जत प्यारी थी। उसे दोषी होना मंजूर था लेकिन ऐसा दुष्कर्म करना नहीं जो सुमित्रा ने किया है। खैर अब सच्चाई यही है अब जो भी पंचों का फैसला हो। इस पर पंचायत ने सुमित्रा को दोषी ठहराया और उससे शकुन्तला और पंचायत से माफी मांगने को कहा और दंड स्वरूप गांव को छोड़ने का फैसला सुनाया। शकुन्तला ने इस पर पंचों से अर्ज की कि ये मेरे साथ ही इसी गांव में रहेगी। पंचायत इसे माफी मांगने का हुक्म भर दे। पंचों ने शकुन्तला की बात मानते हुए सुमित्रा से माफी मांगने को कहा। सुमित्रा ने पंचायत और शकुन्तला से माफी माँग ली। पंचायत बर्खास्त हो गयी और सब अपने अपने घर को चल पड़े।
पंचायत से निकल कर सभी यही सोच रहे थे कि क्या एक स्त्री के लिए उसके बच्चे से ज्यादा प्रिय महावर का रंग होता है? क्या उसके मन की ममता ने बच्चे की छाती पर पैर रख कर निकलने की इजाजत दे दी? क्या हो रहा है आज के समाज को? क्या आज एक मां के लिए उसके बच्चे से बढ़कर महावर का रंग है?
घर पहुच कर शकुन्तला ने सुमित्रा से सिर्फ यही बात कही। बहन मैंने कभी दौलत की चाह नहीं की। मैंने तो हमेशा रामदीन और तुम्हें अपने बच्चों के समान माना है। आज पंचायत में निर्वस्त्र हो कर तुमने ये साबित कर दिया कि महावर का रंग आज तुम्हारी माता पर भारी हो गया। आज तुमने महावर के रंग के लिए ममता का गला घोंट दिया। आज ममता का पलड़ा हल्का और महावर के रंग का पलड़ा भारी हो गया। सुमित्रा शकुन्तला के पैरों में गिर गयी और माफी मांगने लगी। शकुन्तला ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और भविष्य में ऐसा न करने की कसम दिलाई। दोनों की आखों में आँसुओं की धार बहने लगीं। दोनों ने एक दुसरे को माफ किया और आगे का जीवन सुख पूर्वक बिताने का फैसला लिया।
कभी कभी में सोचता हूँ क्या वो पंचायत का निर्वस्त्र होकर सच्चाई साबित करवाने का फैसला सही था? क्या आज भी हमारे समाज में बदलाव आया है? शायद नहीं या शायद हाँ। पता नहीं। ये सोचते हुए आज भी अपने समाज को लेकर कई धारणाएं सामने आ जाती हैं। अब पाठकों के ऊपर मैं ये फैसला छोड़ता हूँ कि क्या पंचायत का सच्चाई साबित करवाने का फैसला सही था? क्या एक स्त्री की इज्जत, सम्मान कुछ नहीं? क्या वास्तव में जो सुमित्रा ने किया वो सही था? क्या वास्तव में ममता से ज्यादा प्यारा महावर का रंग होता है?
~ सुभाष चन्द्र, शोध छात्र, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय