कलमकार विराट गुप्ता रचित काव्य संग्रह “साँसो की कहानी” का कुछ अंश जिसमें मुगलकालीन सैनिक वोतर की प्रेम कथा का वर्णन है। प्रेमानुराग, दांपत्य जीवन की शुरुवात के क्षणों से लेकर उसके वीरगति पश्चात स्वर्गारोहण का सामयिक विवरण है। यह कहानी ५ समय काम में विभक्त है जिसे पद्य और गद्य दोनों के जरिए प्रस्तुत किया गया है।
प्रथम सोपान
वोतर एक पुष्प वाटिका में भ्रमण कर रहा है, वहां अपनी सहचरी वृता के साथ भ्रमाचार में लिप्त है। दोनों एक दूसरे को दृष्टिगत होकर वरण की कामना स्वरुप गंधर्व में बंधते हैं, वोतर एक पुरुष होने के अनुसार अपने प्रेम का अग्रण करता है और वृता से कहता है-
मूल्य रहित मुस्कान तुम्हारी
हृदय में भरा जो स्नेह है
मैं मन उछलु, पंख पसारे
प्रेम लोलुप ये देह है
आशय तनिक समझाना मुझको
जो देह्या तुम मेरी हो
जीवन पथिक भटका मैं हूँ,
ये भिक्षा मुझे प्रदेय है
मैं मन मचलू बावरा
और तुम स्नेह, उमंग, उल्लास हो
तुम स्थिर जल सरिता हो
मन मेरा बहता नदी नीर है
तुम चपल सुन्दर वन काया,
मैं आढ़ा टेढ़ा कुछ बन भी न पाया
मैं तुम्हारी नयनो की काजल को,
जब देखा खुद को भ्रमित सा पाया
तुम जीवन संगिनी सी लगती,
मैं इसका अधिकार हूँ
तनी प्रेम कर लो हम से भी
अगर कभी मैं स्वीकार हूँ
जल माछ मैं, स्वपन सा
तुम आशाओं की वर्षा हो
मैं निरा भटकता जोगी हूँ
तुम विद्वानों की चर्चा हो
तुम सत्य प्रमाण प्रसन्न चित्त लगती
मैं चपल विचार हूँ
तुम मधुरस उवाचनी
मैं वीरों की ललकार हूँ
वृता-वोतर के इस प्रकार के प्रेमालाप से प्रसन्नचित हो कर उसे पति रूप में पाने की कामना करती है, दोनों छिप- छिप के एक दूसरे से मिलते हैं, जिसका अनुमान वृता के पिता राजा परमध्वज को लगता है। राजा रंधवाद के छत्तीसगढ़ के महानायक हैं, और इस प्रकार दोनों के छिप-छिप के मिलने से होने वाले अनाचार और अपमानित होने का भय उन्हें व्यथित करने लगता है। मंत्री विचारबाहु से मंत्रणा पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि दोनों के प्रेम की सत्यता परखनी चाहिए, साथ की वोतर की वीरता की जानकारी उन्हें प्राप्त करनी होती है, इस हेतु वो दोनों को कुछ समय के लिए अलग रहने का परामर्श देते हैं। इस दौरान राजा वोटर को सेना- पति बनाने के उद्देश्य से उसे प्रशिक्षण हेतु भेज देता है और वृता उसे पति रूप में पाने हेतु सोलह सोमवार के व्रत करती है और उसी व्रत के प्रभाव से भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरुप उसे वोतर ही पति रूप में प्राप्त होता है। राजा परमध्वज प्रेम पूर्वक दोनों का विवाह कराते हैं और प्रथम – अनुराग- संध्या में पुष्पों से सजी स्नेह पर लजाती सी बैठी वृता राजकुमारी से सेना-अधिनायक की धर्म पत्नी का गौरव वरण करती है, चेतना के प्रेम रास में डूबने से पहले वोतर जिसने अपने मार्तभूमि हेतु शपथ ली है, अपनी नवब्याहता को कहता है –
द्वितीय सोपान
तुम इतना तनिक समझ लो मुझको
तब विचार कर पाओगी
तुम अगर जल न रहो तो,
अग्नि कैसे नियंत्रित कर पाओगी
तुम शीतलता मन में रखना,
किंचित तब मैं वीर बन पाऊंगा
तुम जरा सा प्रेम दो
मैं विश्व विजय कर आऊंगा
तुम लोलुप रहोगी मेरे स्नेह में
तो खाक में ही मिल जाऊंगा
तुम वीरांगना सा शौर्य दिखाओ
तो मैं वीर कहलाऊंगा
तुम स्नेह आवेशित हो कभी
मुझे इतना भी न तंग करो
जब मैं जा रहा रण भूमि में
तो तुम ध्यान न मेरा भंग करो
मैं स्वर्ग से सुन्दर इस धरा का
लाल तभी कहलाऊंगा
तुम जरा श्रृंगार रस बनो
मैं वीर रस बन जाऊंगा
तुम देह परित्याग का
न भेद रखो न मोह करो
मैं रणवीर शुर हूँ
इसमें न संदेह करो
प्रेम तो ईश्वरीय सत्ता से उपजा एक मानव ह्रदय का पौधा है, जिसे भावना रूपी जल से सींचना होता है। मोह उसका उन्मूलक है, वो पौधे को गमले में लगा के रखना चाहता है, अपनी दृष्टि अंतराल में, परन्तु कर्म विचारहीन होता है, उसे भावनाओं के विचार कहाँ समझ आते हैं। वो तो उन्मुक्त रहना जानता ही नहीं है। जिस चाल पर चला दिए जाता है उसी पर चलता है, अपने रास्ते के बंधे किनारे उसे नहीं दिखते। उसे न ही उसे उसके कंधो के बोझ का आभास होता है । उसी प्रकार वोतर कुछ दिवस अंतराल में अपनी नवब्याहता को संध्या सेज पर ही छोड़ अपने कर्म के कर्तव्यों से लदे एक बुलावे पर ही रण पर जा पहुँचता है। राजा अपने पुत्री-वर की वीरता देख अपने भाग्य को प्रभु भोलेनाथ का आशीर्वाद मानता है और उसके वीरता का गुंजन करने कई वीर- रस प्रेमियों को उसके शौर्य की गाथा गढ़ने कहता है। वोतर इन सब से अलग अपने कर्म में डूब कर मात्रा अपने कर्तव्यों का वहन करता है। अपने मातृ भूमि पर उसके प्रेम का दृश्य रण में ऐसे दिखाई पड़ता है
तृतीय सोपान
ललकार उठा जब रण धरा पर
शूरवीर इस काल का
हे राम बल शक्ति देना,
बन के रक्षक इस लाल का
मैं माँ भारती की सेवा में
अब प्राण लुटाने आया हूँ
अपने माँ के अपमान का
मूल्य चुकाने आया हूँ
मैं सिंह बराबर गर्जन से
ये रण धरा डोला दूंगा
माँ नज़र आप पर कोई उठाये
उसे मृदा में मिला दूंगा
प्रथम दिवस के युद्ध समाप्ति में वोतर की वीरता का प्रमाण देती धरती, रक्त-रंजीत लाल दिखलाई पड़ती है। उसे अपनी धर्मपत्नी का स्मरण हर श्वास के साथ होता रहता है, संभवतः उसके प्रेम, सतीत्व और त्याग का ही ये परिणाम है की वोतर अपनी वीरता का संचय कर पाया है। नहीं तो ऐसा है की प्रेम ने किसी को वीर बनाया है। वृता की इस अनुरूप भावना को कहाँ कोई और समझ पाता। उसके सर्वाधिकार तो बस वोतर के ह्रदय के ही थे। वृता के हृदय की चीत्कार भय में परिवर्तित न हो यह समझ वोतर उसे हर रोज एक पत्र भेजता है।
चतुर्थ सोपान
भेज रहा हूँ पत्र तुम्हे रण से,
तुमको मेरी प्रिया बताने को
मैं शूरवीर बन कर,
जो गया था जो विपदा मिटाने को
मैं तेरे हस्त रेखाओं से जुड़ने का अभिलाषी हूँ
तू अगर गंगा माँ है
मैं बनारस, मैं काशी हूँ
तू चंचल पथ रेणु
मैं सीधा पथिक गामी हूँ
तुम सुधा, मेरी क्षुधा मिटाती
मैं बस नाम का हृदय स्वामी हूँ
जो प्राण बसते है दो देहों में
उनको एक बनाने को
कदाचित संघर्ष करना पड़ेगा,
प्रेम स्नेह निभाने को
परन्तु इस बात का आवेग कभी मत लाना
मैं प्रेम करूँ नयन भर के
तुम किचिंत कभी न घबराना
घनघोर युध्द होता है, वोतर अंततः दुश्मनों को हरा कर भगाने में सफल तो होता है, परन्तु शत्रु दल के तीरों से उसकी देह छलनी हो जाती है और वो एक रथ के पहिये से टिका अपने बहते रक्त में भी प्रेम का आलाप लिखता है। वृता का प्रेम उसे छलनी होने के बाद भी जीवित रखता है और अपने रक्त से वह यह अंतिम स्याही भरता है।
पंचम सोपान
मैं अंत काल का पत्र ये तुम्हे लिखे जाता हूँ
इस जन्म का जो रह गया
विचार किया है पश्चात निभाना
मैंने देह माँ भारती की लाज बचाने में दी है
मेरी इस गरिमा का मुकुट मेरी संतानों को पहनाना
मैं अश्रु पूरित नहीं हूँ
अपितु प्रसन्नता इस बात की है
की ये अश्रु टपकते जो पन्नो पर
अब भारती माँ को आज़ाद कर पाने की है
चलो कलम विराम का भी ये संदेशा आया है
मुझे मेरे हरी प्रभु ने उनके लोक बुलाया है
छोड़ रहा देह पर
श्वास तुम्हे समर्पित है
कुछ माता का प्रेम है तो कुछ तुम्हे भी अर्पित है
तुम भिगोंना न चक्षु दल
जो कमलों के पुष्प से हैं
बहुत चंचल थे पर, ज्ञात नहीं क्यों अब चुप से हैं
शहंशाह गुप्ता “विराट” मूलतः छत्तीसगढ़ के बतौली ग्राम के रहने वाले हैं। चेन्नई में एनीमेशन और वी ऍफ़ एक्स की पढ़ाई के बाद कई सालों तक वहाँ के कॉलेजेज़ और इन्स्टिटूट्स में बतौर लेक्चरर काम किया, फ़िल्मों में बढ़े प्रेम की वजह से कर्मों की तलाश में मुंबई चले आये, जहां वो बॉलीवुड में प्रयासरत हैं। कई शार्ट फिल्म्स का निर्माण किया है और उनकी कविताएं कई ऑनलाइन पोर्टल्स, न्यूज़ पेपर्स एवं पत्रिकाओं का हिस्सा रह चुकी है।