Tag: कोरोना वायरस

  • हाँ मैं एक मजदूर हूँ

    हाँ मैं एक मजदूर हूँ

    हाँ मैं एक मजदूर हूँ तकलीफ़ों से भरपूर हूँ चुनाव तो अभी है नहीं हर सहूलियत से दूर हूँ औकात कुछ भी नहीं इसलिए तो मजबूर हूँ । उनकी रोजी-रोटी के लिए न्यूज चैनलों पे मशहूर हूँ । सच कहा है आपने अजय हुकुमतों के लिए फ़ितूर हूँ । – अजय प्रसाद

  • मजदूर

    मजदूर

    भारत के श्रमवीरों की मैं गौरव गाथा लिखता हूँ। जो रीढ़ है देश की उनकी पीड़ा लिखता हूँ। जो हर मौसम में पीड़ा सहकर हँसकर भी जी लेते हैं। जो कभी न मुँह से कुछ मांगते घर पैदल ही चल देते हैं।। ऐसे मजदूरों की मैं गौरव गाथा लिखता हूँ। जो रीढ़ है देश की…

  • मुश्किल में मुस्कान

    मुश्किल में मुस्कान

    चारों तरफ हीं अंधियारा है गलियां सब सुनसान मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं कहां जाए इन्सान नौनिहाल सब भूखे मरते हे देव करो अब त्राण अब कैसी विपदा आन पड़ी है मुश्किल में मुस्कान। गलतियों का पुतला मानव को तूने हीं तो स्वयं बनाया फिर उन की छोटी भूलों पर क्रोध है इतना क्योंकर आया…

  • महँगाई

    महँगाई

    महँगाई में आम आदमी हो जाता हक्का-बक्का खुशियों में नहीं बाँट पाता मिठाई। जब होती ख़ुशी की खबर बस अपनों से कह देता तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। दुःख के आँसू पोछने के लिए कहाँ से लाता रुमाल? तालाबंदी में सब बंद ढुलक जाते आँसू। बढती महंगाई में ठहरी हुई जिंदगी में खुद को बोना…

  • लॉकडाउन की बातें

    लॉकडाउन की बातें

    अजब है ना, ये कमाल है ना रहती हैं याद तारीखें। ना याद रहते, ठीक से दिन और वार। हर दिन ही दिल को लगे है रविवार। शांति, संयम और घर ही है स्वस्थ जीवनोपचार। ना बाहर की बातें ना यारों का दीदार, ना सड़कों पर लंबे-लंबे जाम ना ही कारों के हॉर्न की चीखपुकार।…

  • पलायन करते मजदूर

    पलायन करते मजदूर

    कितना कुछ कहते रहे, मजदूरों के पाँव। तपती जीवन रेत में, कहाँ मिली है छाँव।। पैदल ही फिर चल पड़े, सिर पर गठरी भार। कैसा मुश्किल दौर यह, महामारी की मार।। पाँवों के छाले कहें, कर थोड़ा आराम। जब तक मंजिल न मिले, मिले कहाँ विश्राम।। रोटी बिखरी राह में, खाने वाले मौन। सियासती माहौल…

  • मैं मजदूर

    मैं मजदूर

    मैं मजदूर फौलादी इरादों वाला चुटकियों में मसल देता भारी से भारी पत्थर चूर-चूर कर देता पहाड़ों का अभिमान मेरे हाथ पिघला देते हैं लोहा मेरी हिम्मत से निर्माण होता है ऊँची इमारतों का मेरी मेहनत से बाँध देता हूँ नदियों को मैं मजदूर मजबूत हौंसलों वाला चीर कर रख देता सागर का सीना भी…

  • कोरोना कह रहा

    कोरोना कह रहा

    कोरोना कह रहा-मरो ना, विकास की अंधी रफ्तार के आगे, कहां सोच पाया था इंसान कि जीवन का मतलब बारुद व जैविक हथियार नहीं होता, न ही इंसान से नफरत, न उच्च, न नीच, क्योंकि कोरोना ने सबको बना दिया है-अछूत व नीच और लोग मांग रहे जीवन की भीख, फिर भी नहीं मिल पा…

  • कोरोना से जंग

    कोरोना से जंग

    मैं तो चला था फ़क़त अपनी जिम्दारियों से लड़ने, क्या पता था जिंदगी और मौत से लड़ना पड़ जायेगा, कहता था जो अपनी जान से भी प्यारा मुझे, वो एक बीमारी के चलते मेरी परछाईं से भी डर जाएगा, पर मैं जानबूझ कर तो इस मैदान ए मौत में नही आया, फिर वो क्या था…

  • गरीबी

    गरीबी

    अख़बारों की फिर सुर्खी मिली। आज फिर एक गरीब की अर्थी चली। ओढ़ अरमानों की बलि। एक गरीब की अर्थी चली। आखिर क्या जल्दी थी, दुनियां छोड़ जाने की। सायद कफ़न के महंगे हो जाने की। थी, पहले से महंगाई की मार, गरीब और बिन रोजगार, युद्ध था, ये भयानक चढ़ गया फिर गरीब, गरीबी…

  • हिम्मत कायम हो

    हिम्मत कायम हो

    आपस में अगर अपना जिन्दा होना है कोरोना के माहौल में हिम्मत कायम हो भरोसा दिलो में जोड़े रखना है दिलों में अपनी हुकूमत कायम हो मन मेरा करता है बगावत कई दफा हर पल इन्कलाब की सूरत कायम हो क्या हो जब चारदीवारी कम सी हो अगर लोग चाहते हैं इमारत कायम हो बेखुदी,बे…

  • कोरोना काल

    कोरोना काल

    कैसी अबकी साल है ये कोरोना काल है कैसे करे सामना न हथियार न ढाल है दुनिया का जो हाल है ये कोरोना जाल है बच गए तो काल (कल) है नहीं तो पका काल है हम डाल डाल है ये तो पात पात है किस कोने में छुपे हम पूरी दुनियां इसका ताल है…

  • एक मजदूर की कहानी

    एक मजदूर की कहानी

    आधी रोटी भी नहीं नसीब जिस इन्सान को उसका नाम मजदूर है। शायद, इसलिए ठूस दिए जाते हैं ट्रकों में भर-भर या, छोड़ दिए जाते हैं भटकने को भूखे-प्यासे रेंगने को तपती धरती। एक मजदूर का खटिया, बिछौना, बर्तन बक्सा-पेटी, छप्पर सब के सब उजाड़ दिए जाते हैं जैसे, यहाँ कुछ पहले से था ही…

  • मेरी मजबूरी रोटी

    मेरी मजबूरी रोटी

    कुलबुलाती है, भूख बिलबिलाती है। ठंडी रातों में भी जेठ सी जलाती हैं। अपनी मजबूरी के किस्से को, मासूम आँखों से झलकाती है।। नहीं कोई मजहब, ना कोई रब इसका, ना कोई धर्म, ना कोई जात इसका। भूखा इंसान जूठा निवाला निगलता है । अपने भार से भी ज्यादा वजन उठाता है।। पेट में ज्वाला…

  • भारत माँ के तारे

    भारत माँ के तारे

    देखा नही खुदा कही घूमा मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे पता ना था वो पास है मेरे हम जीते है जिनके सहारे निकल पड़ते है वो हर सुबह अपने कर्म निभाने कुछ नही है अभिलाषा उनको वो जान बचाते हमारे पॉव पखेरना है हमको उनके जब द्वार आये वो हमारे हम पता नही क्यों भूल जाते है…

  • लॉकडाउन और मजदूर

    किसी भी आपदा, महामारी का सबसे ज्यादा प्रभाव कमज़ोर और गरीब वर्ग पर ही होता है। कोरोना जैसी महामारी जिसे लेकर तो विदेशों से आए अमीर मेहमान थे लेकिन इस महामारी के बाद भारत में लोकडाउन होने से सबसे ज्यादा असर उन गरीब मजदूरों पर हुआ जो हर रोज मेहनत मजदूरी करके कमाते थे और…

  • आजादी की हवा

    आजादी की हवा

    और कब तक कैद रहेंगे हम? आज अहसास हो रहा है, पिंजरों में बंद पंछियों का मर्म, महसूस करते हो उनकी छटपटाहट? अब करो, कैद होने का दर्द क्या होता है, जानों सच ही कहा है किसी ने, जा तन बीते वा तन जाने सोचो तो, वो अपना दर्द किसी से कह भी तो नहीं…

  • कहां खो गया खुशियों का संसार

    कहां खो गया खुशियों का संसार

    कहां खो गया यह खुशियों का संसार नहीं कोई सुनता है उस दिल की पुकार जिन्होंने जोड़े तेरे दर पे दोनों हाथ माथा भी टेके तेरे द्वार तेरे ऊपर किया पूर्ण विश्वास दिया तुझे ऊंचा सम्मान कहां खो गया यह खुशियों का संसार मानव निर्मित पत्थर की मूरत को माना है अपना भगवान फिर भी…

  • कोरोना चाइना का

    कोरोना चाइना का

    चाइना तेरे कोरोना ने, ये क्या दहशत फैलाई है। याद रख परास्त करने की, हमने भी कसमें खाई है।। तेरे कोरोना सा इस जग में, दूजा कोई शैतान नहीं । हम ठोकर मार पछाड़ेंगे, रहेगा नामो निशान नहीं। इस वायरस की जड़ें हिलाने हमने फौजें लगाई है, याद रख परास्त करने की हमने भी कसमें…

  • थोड़ी दूरियां बढ़ा लें

    थोड़ी दूरियां बढ़ा लें

    कितना हाहाकर है सितम ढाने को जो जन्मा है लाइलाज़ कोरोना! सक्षम है, नष्ट कर देने को समस्त मानव जाति। चिंतित है सम्पूर्ण विश्व इस भयावह स्थिति से बस आशा की एक किरण है सोसल डिस्टेनसिंग तो आओ, आज थोड़ी दूरियां बढ़ा लें अपनों से, अपनों के लिए। ~ अमित कुमार चौधरी