मजदूर के विचार

अपने अंतःकरण में जिज्ञासाओं का बोझ लिए हुए मैं चले जा रहा हूं खुद में खुद की सोच लिए हुए महामारी के दरमियां जीने की सारी उम्मीदें खोकर मैं खुद के आंसू पोछने लगा, अपनी आंखों से रोकर जब सोच…

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अब वो दोस्त बडे़ याद आ रहे हैं

अब वो दोस्त बड़े याद आ रहे हैं जिनसे गुफ्तगू किए बिना दिन बीते जा रहे हैं अब वो जमघट बड़ा याद आ रहा है जहां सन्नाटा अपना घर बना रहा है अब वो दिन बड़े याद आ रहे हैं…

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