राष्ट्रकवि दिनकर जी

उदित हुआ वह दिनकर की किरणों सागंगा के आंचल मे पल कर, गाँवो की गलियों मे बढ़ कर,वह नुनुआ जैसे जैसे बढ़ता है हिन्दी का रंग उस पर चढ़ता हैहिंदी को हथियार बना कर भारत से वह कहता है, पुनः…

0 Comments

दिनकर

साहित्य जगत के "अनल" कवि का,अधैर्य जब चक्रवात पाता है ।तब "दिनकर "भी "दिनकर" से,दीप्तिमान हो जाता है । "ओज" कवि "रश्मिरथी "पर,जब-जब हुंकार लगाता है।"आत्मा की आंखें "कैसे ना खुलेगी।पत्थर भी पानी हो जाता है। साहित्य जगत के "अनल"…

0 Comments