पलायन करते मजदूर

कितना कुछ कहते रहे, मजदूरों के पाँव। तपती जीवन रेत में, कहाँ मिली है छाँव।। पैदल ही फिर चल पड़े, सिर पर गठरी भार। कैसा मुश्किल दौर यह, महामारी की मार।। पाँवों के छाले कहें, कर थोड़ा आराम। जब तक…

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मैं मजदूर

मैं मजदूर फौलादी इरादों वाला चुटकियों में मसल देता भारी से भारी पत्थर चूर-चूर कर देता पहाड़ों का अभिमान मेरे हाथ पिघला देते हैं लोहा मेरी हिम्मत से निर्माण होता है ऊँची इमारतों का मेरी मेहनत से बाँध देता हूँ…

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साकेत हिन्द लिखित कुछ दोहे

दिखावा बहुत हो चुका, बढ़ गया ताम-झाम।।सत्य पुरुष तो हैं अब, सदा भरोसे राम।। अधम कार्य हम करते, कहें आया कलयुग।अपनी गलती मानकर, कर लो सुंदर यह युग।। चोरी गुस्सा छल अहम, ईर्ष्या गरम मिजाज।सब इंसानी फितरत है, दिल पर…

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