लॉकडाउन में मजदूर

इस वर्ष कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते तमाम कंपनियाँ, कल-कारखाने सुचारु रूप से नहीं चल रहें हैं और ऐसे में वहाँ काम करनेवाले मजदूरों की आय बंद/ठप हो गई। उन्हें किसी दूसरे विकल्प पर सोचने की आवश्यकता आन पड़ी…

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लॉकडाउन और मजदूर- १

कोरोना महामारी के दौर में हर इंसान परेशान है। सेहत का ख्याल रखना है, आजीविका चलानी है परंतु काम करने के स्थान भी बंद हैं। इस समय मजदूरों का बुरा हाल है जो अपने घर से दूर शहरों में गएं…

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ज्योति कुमारी

ज्योति ने बीमार पिता को गुरुग्राम से दरभंगा साइकल पर बिठाकर पहुंचाया; १२०० किलोमीटर से की दूरी तय करने वाली ज्योति की सराहना इवांका ट्रंप ने भी की है। देश की ज्योति कोरोना महामारी के इस दौर में जहाँ अनगिनत…

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वक़्त सुखवाला भी आएगा

आज अगर अंधेरा है, निश्चय उजाला भी आएगा। दुःख की बादशाहत सदा न रहेगी, वक्त सुखवाला भी आएगा। फिर से किवाड़ खुलेंगे सारे , हृदय हर्ष-उमंग आएगा। शमा भी रोशन होगी फिर से, महफ़िल में रंग आएगा। शायद तंग आ…

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मजदूरों की करुणव्यथा

देख उन्हें सड़कों पर, मैं व्यथित हो जाती हुं, दशा देखकर उनकी ऐसी, मैं लाचार हो जाती हुं। वायरस एक प्लेन से आया, प्लेन वाले बचे रहें, ऐसा क्युं हर बार ही होता, गरीब ही मरते रहे। ऊपर वाले तु…

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आँखों में तो बस गाँव है

हाथों में सामान थामे कंधों पे बच्चे साधे बीवी को साथ में ले निकल पड़ा है अपने गांँव की ओर नंगे बदन, नंगे पाँव है आँखों में तो बस गाँव है। साथ है पानी और कुछ रोटियाँ ना जाने को…

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कमजोर न समझो

इतना कमजोर नही समझो की सिर पैर सवारी हो जाए अनुशासन इतना मत लांघो की दुश्मन भारी हो जाए भूखे भी है प्यासें भी है बेबस है लाचार भी है पर इनको इतना मत रोको की ये मजदूर भी ब़ागी…

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आत्मनिर्भरता

निरालंब तुम रहना सीखो औरों का क्या दम भरना अपने नैया खुद हीं खेवो आत्म निर्भर जग में रहना औरों के बल पर जो बढ़ता शक्तिहीन कहलाता है जंगल में बोलो गीदड़ कब सिंहों सा आदर पाता है अपने भरोसे…

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मजदूरों का दर्द

वो घर बनाते हैं, तब रहते हैं लोग मकान में कोई उधार नहीं देता अब उनको दुकान में क्या खबर थी उन्हें कि इतना सितम होगा कि हम आएंगे ही नहीं अब पहचान में ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए लोग…

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कोरोना- छोटा वायरस

एक छोटे से वायरस ने, यूँ कर दी तालाबंदी है. समझौते सँग सब जी रहे क्योंकि, कैद मे जिंदगी है. न होता लड़ाई झगड़ा है, न कही हुयी दरिंदगी है.. कम हुयी हैवानियत भीं, क्योंकि, कैद मे जिंदगी है. धरती…

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धन्यवाद कोरोना

मानव है सर्वशक्तिमान, इस दंभ को तोड़ा तुमने, इस पुनर्जागृति के लिए तुम्हारा धन्यवाद कोरोना! यहाॅं सबको समय व अपनों का महत्त्व समझाया, ऐसे पुण्य हेतु हम सब करते हैं अभिवाद कोरोना! जिनसे तुम सुदूर हो, उन्हें जीने की उम्मीद…

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खतरा अभी टला नहीं है

लॉक डाउन के चौथे चरण में खुलने लगी दुकान, झट पट अधिकतर दौड़ पड़े हैं, खरीदने सामान। पर इतना समझ लीजिए, खतरा नहीं अभी टला, सोशल डिस्टेंस न बनाया, जीना न होगा आसान।। अभी संभल कर रहना होगा, इसी में…

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मैं मजबूर हूँ

गरीबों पर सबसे बड़ा संकट काल है प्रवासी मजदूरों का देखो हाल बेहाल है महामारी में जीवन जीना बड़ा दुस्वार हैं गरीब तबके पर पड़ी सबसे भारी मार हैं गरीब मजदूर ही सबसे ज्यादा मजबूर हैं चारों तरफ देश मे…

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हाँ मैं एक मजदूर हूँ

हाँ मैं एक मजदूर हूँ तकलीफ़ों से भरपूर हूँ चुनाव तो अभी है नहीं हर सहूलियत से दूर हूँ औकात कुछ भी नहीं इसलिए तो मजबूर हूँ । उनकी रोजी-रोटी के लिए न्यूज चैनलों पे मशहूर हूँ । सच कहा…

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मजदूर

भारत के श्रमवीरों की मैं गौरव गाथा लिखता हूँ। जो रीढ़ है देश की उनकी पीड़ा लिखता हूँ। जो हर मौसम में पीड़ा सहकर हँसकर भी जी लेते हैं। जो कभी न मुँह से कुछ मांगते घर पैदल ही चल…

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महँगाई

महँगाई में आम आदमी हो जाता हक्का-बक्का खुशियों में नहीं बाँट पाता मिठाई। जब होती ख़ुशी की खबर बस अपनों से कह देता तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। दुःख के आँसू पोछने के लिए कहाँ से लाता रुमाल? तालाबंदी में…

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गरीबी

अख़बारों की फिर सुर्खी मिली। आज फिर एक गरीब की अर्थी चली। ओढ़ अरमानों की बलि। एक गरीब की अर्थी चली। आखिर क्या जल्दी थी, दुनियां छोड़ जाने की। सायद कफ़न के महंगे हो जाने की। थी, पहले से महंगाई…

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हिम्मत कायम हो

आपस में अगर अपना जिन्दा होना है कोरोना के माहौल में हिम्मत कायम हो भरोसा दिलो में जोड़े रखना है दिलों में अपनी हुकूमत कायम हो मन मेरा करता है बगावत कई दफा हर पल इन्कलाब की सूरत कायम हो…

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एक मजदूर की कहानी

आधी रोटी भी नहीं नसीब जिस इन्सान को उसका नाम मजदूर है। शायद, इसलिए ठूस दिए जाते हैं ट्रकों में भर-भर या, छोड़ दिए जाते हैं भटकने को भूखे-प्यासे रेंगने को तपती धरती। एक मजदूर का खटिया, बिछौना, बर्तन बक्सा-पेटी,…

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मेरी मजबूरी रोटी

कुलबुलाती है, भूख बिलबिलाती है। ठंडी रातों में भी जेठ सी जलाती हैं। अपनी मजबूरी के किस्से को, मासूम आँखों से झलकाती है।। नहीं कोई मजहब, ना कोई रब इसका, ना कोई धर्म, ना कोई जात इसका। भूखा इंसान जूठा…

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