Tag: मजदूर
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लॉकडाउन और मजदूर
किसी भी आपदा, महामारी का सबसे ज्यादा प्रभाव कमज़ोर और गरीब वर्ग पर ही होता है। कोरोना जैसी महामारी जिसे लेकर तो विदेशों से आए अमीर मेहमान थे लेकिन इस महामारी के बाद भारत में लोकडाउन होने से सबसे ज्यादा असर उन गरीब मजदूरों पर हुआ जो हर रोज मेहनत मजदूरी करके कमाते थे और…
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मैं मजदूर हूँ
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में आज हर कोई असुरक्षित महसूस कर रहा है। लोगों को घर में ही स्वयं को कैद होने और अपनो से दूर रहने को विवश होना पड़ा है। आज इस महामारी से अपने देश में अगर कोई वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है तो वो है मजदूर वर्ग। कारखाने-मीलें सब बंद…
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मानवता के शत्रु
कुछ दिन पहले यह समाचार पढ़ कर मेरा मन द्रवित ह़ो गया कि मजदूरो ने आगरा से लखनपुर तक पहूंचने का भारी भरकम किराया अदा किया क्या इंसान अपनी इंसानियत खो चुका है कि इस त्रासदी मे भी लूटपाट और उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा है धिक्कार है ऐसे नरभक्षियों पर इसी बिषय पर…
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मजदूर- राष्ट्रनिर्माता
मजदूर हैं भले वो मजबूर बो नही है गलती है रोटियों की मगरूर वो नहीं है मरते है वो सड़क पर सरकारी आंकड़ों में देकर के चंद पैसे भिखमंगे वो नही है हर अमीर से छले वो पैदल ही तो चले वो मंजिल है दूर कितनी लेकिन तो क्या करे वो है आस जिनसे उनकी…
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मैं एक मजदूर हूं
मैं एक मजदूर हूं मैं ठोकर खाने को मजबूर हूं दो रोटी पाने की चाह में मैं घर परिवार से दूर हूं जी हां मैं एक मजदूर हूं सरकारें आती रही जाती रही कठिनाइयां हमारी और बढ़ाती रही अपनी आउंछी राजनीति के लिए मोहरा हमे बनाती रही मुद्दाओं में भटकने को मैं मशहूर हूं जी…
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प्रवासी मजदूर
देख पीड़ा श्रमिक की मन रहा है डर स्याह हर उम्मीद है जाए तो किस दर रेल की पटरी हो या हो कोई सड़क हो रक्त रंजित चीखती है सभी डगर धैर्य की भी सीमा, होती है संसार में पार उसके पार करलूँ कैसे ये सफर पीड़ा उनकी आज साहिब जरा सुनो चिलचिलाती धूप है…
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जवाब वक्त को देना होगा
जवाब वक्त को देना होगा सच को तुमको लेना होगा आह लगेगी मजदूरों की तब तुमको हिसाब देना होगा जवाब वक्त को देना होगा हर तरफ मौत का मातम है प्यासा भूखा है हर कोई चलने को मजबूर है लेकिन नही यहाँ पर साधन कोई डरता है ये देख के वो भी पर खतरा अब…
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सड़क और मजदूर
सड़क कहती मजदूर से तुम मेरे साथी हो जिस प्रकार साथ निभाया है ये लाइट पोल और ठीक तुम्हारे बगल वाली नाली चलो तुम भी परमामेन्ट हो जाओ ठीक एक दाद और खुजली की तरह मजदूर ने अपनी आँखों से एक आँख निकालकर कहा- “आखिरकार कब-तक? एक सरकार की तरह मैं भी अनियंत्रित रहूंगा…” कभी…
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आत्मनिर्भरता
छोड़ आसरे गफलत के खुद को मज़बूत बनाना है। स्वावलंबी बन करके, खुद आत्मनिर्भर कहाना है।। गैरों के कंधों पर अपनी, बंदूक नहीं रखना सीखे! खुद की मेहनत से ही, खाना, जीना, रहना सीखे!! जिम्मेदारी और परिश्रम से, हर पथ अब चमकाना है। स्वावलंबी बन करके, खुद आत्मनिर्भर कहाना है।। भाग्य भरोसे बैठे कायर, उठो…
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मजदूर के विचार
अपने अंतःकरण में जिज्ञासाओं का बोझ लिए हुए मैं चले जा रहा हूं खुद में खुद की सोच लिए हुए महामारी के दरमियां जीने की सारी उम्मीदें खोकर मैं खुद के आंसू पोछने लगा, अपनी आंखों से रोकर जब सोच रहा था मैं कि मेरा जन्म ही क्यों हुआ तभी मेरी पीठ पर सवार मेरी…
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मेरे हिस्से में
क्या मिला मेरे हिस्से में, बताऊगां बच्चो को किस्से में। मै कितना मजबूर था? क्यो कि मै मजदूर था। हर रोज नया तमाशा था, मन में मेरे भी आशा था। मिल जायेगी सहयोग हमे, खुशिया होंगी मेरे भी घर में जब वो ऐलान किये, मन में मेरे कई फूल खिले। पर ये तो सारे वादे…
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एक मजदूर का प्रश्न
ये मजदूर है हाँ, वही मजदूर जिसने तुम्हारे लिए निर्मित किया गगनचुंबी इमारतों को और स्वयं के रहने के लिए अपना घर भी नहीं बना पाया तुम्हारे रहने के लिए उसने सुंदर भवनों, आलीशान महलों को बनाया और खुद रहा झोपड़ियों में गुजार दिया उसने अपना पूरा जीवन एक छत के नीचे उसने ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं…
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हर भूखे को रोटी खिलाने का वक़्त है
इंसानियत का रिश्ता निभाने का वक़्त है हर भूखे को रोटी खिलाने का वक़्त है..।। मजबूर जो बेबस हैं कोरोना की मार से हम साथ उनके हैं ये दिखाने का वक़्त है..।। ये दुःख भी बांट लो चलें मिलजुल कर आज हम एक अच्छा इंसान बनने का वक़्त है..।। विजयी बनेंगे आप हम यदि ठान…
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मजदूर की दुर्दशा
दिखा रहा अपना रौद्र रूप ये महामारी हैं,गरीब मजदूरों की बढ़ती ये लाचारी हैं।लॉक डाउन के दौरान,फैक्ट्री में फंसे थे मजदूर चार।मालिक मौका देख हो गया फरार,छोड़ दिया तड़पते उन्हें बिना अनाज।भूख ने ले ली उसकी जान,देखने न गया कोई द्वार।परिवार से दूर था,रोटी कमाने निकला था।माँ का लाडला था,होटो की मुस्कुराहट था।आह! कराह उठा…
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मैं मजदूर की बेटी हूँ
आओ दोस्तों मजदूरोंकी दास्तां सुनाती हूँ।दूसरों की छोड़ो मैं खुदमजदूर पिता की बेटी हूँ। ज़िन्दगी के हर उतर चढ़ावको मैंने आँखों से देखा है।भूख से अपनी माँ को पेट मेंगमछा बांधते देखा है। एक-एक रूपये कमाने कादर्द मैं अच्छे से जानती हूँ।आज भी 5रूपये बचाने कोमैं रोज पैदल पढ़ने जाती हूँ। चाँदी को पिघलाने मेंसाँस…
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जिंदगी सड़कों पर
जिंदगी सड़कों पर,लाचार बैठी है। अपने घर और काम से,बेजार बैठी है। कोरोना क्या मारेगा।इन जिंदगियों को, जो जिंदगीयां,जिंदगी से लड़ने को,तैयार बैठी हैं । जिंदगी सड़कों पर,लाचार बैठी है। घर -काम से,निकाल दिया इनको,गाड़ी -बसों के लिए,अपने घर तक जाने को,लाचार बैठी हैं। सरकारें कहती है।मिलेगा खाना।जिंदगी बदहालीयों में भी,मुस्कुरा कर जिंदगी के साथ…
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पथिक तुम सुनो
ख्वाब में आते हो,चले भी जाते होगरीबी सहते हो, गरीबी खाते हो ऐ निकलने वालों पथिक तुम सुनोबहुत रोने वालो श्रमिक तुम सुनो तेरे पेट में जो, इक दाना नहींकैसे भूख मिटे, कोई खाना नहींतेरा प्यास बुझे, कतरा पानी नहीं तू वापस आए क्यों?नींद में सोए क्यों?ट्रेन से कटकर यूं!मौत बुलाए क्यों? तू अपने गावों…