मज़दूर है बहुत मजबूर

समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है ये जिसे हम मज़दूर शब्द से नवाज़ते है, कई क़िस्मों का है ये मज़दूर। बस नज़र आपकी है कि किस मोड़ पर वो सोच बैठे कि हाँ ये है मजबूर माफ़ी चाहूँगा 'मज़दूर'। आइए…

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मजदूर दिवस नहीं मजबूर दिवस

जिस दिन भारत की यह तस्वीर बदल जाएगी सच उस दिन देश की तकदीर बदल जाएगी गरीबों और अमीरों के बीच बहुत गहरी खाई है जिस दिन यह गहराई थोड़ी सी भी भर जाएगी सच उस दिन देश की तकदीर…

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मजदूर हम मजदूर

कभी छोटू, कभी रामू काका, तो कभी जमुना बाई, तो कभी पसीने से तर-बतर रिक्शा और ठेला खिंचते! कभी ऊँची ऊँची अट्टालिकाआओं पर अपने घरों का तामम भार उठाये! हाँ घर से कोसों दूर, कभी बेघर, तो कभी मजबूर, हाँ…

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मजदूर बना मजबूर

मजदूर बना मजबूर हां मजदूर हूं मै। बेबस और मजबूर हूं मै।। काम देखकर स्वप्न दिखाकर मुझको तुमने अपना लिया। आती देख मुसीबत मुझ पर तुमने मुझको ठुकरा दिया।। लाचार और विवश होकर के मैंने अपना घर छोड़ा। मुसीबत में…

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लाल हरी चूड़ियां

यहां की प्रत्येक महिला को साहब, बहुत भाती हैं ये लाल हरी चूड़ियां ! श्रृंगार का प्रमुख भाग बनता इनसे, चाहे युवती हो या हो चाहे बुढ़िया ! क्या मालूम है ये कड़वा सच इन्हें, हमें काम कितना करना पड़ता…

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मेहनतकश मजदूर हूँ

मैं मेहनत कश मजदूर हूँ हालातों से थोड़ा मजबूर हूँ खून पसीना एक करता हूँ अपने परिवार का पेट भरता हूँ सुन्दर सपनों की दुनिया मे जीता हूँ उम्मीदों का आकाश निहारता रहता हूँ अपने कर्म पर ही भरोसा करता…

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मजदूर का दर्द

पूरा विश्व परेशान तो इस नोबल कोरोना रूपी महामारी से भी है, लेकिन बच्चो एवं अपनी भूख मिटाने के लिये परेशान तो मजदूर ही है। अब जो अमीर घर बैठे पकवान खा रहे है, उनके पीछे जो पसीना लगा है…

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मजदूर का जीवन

किसी भी बोझ से न थकता हूं वक्त की चोट से न रुकता हूं बस दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरी करता हूं मैं । सपनों के आसमान में बिना गाड़ी बंगले के आराम में अपने कच्चे मकान में…

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मजदूर

कभी इंटे उठाता। कभी तसले, मिट्टी के भर-भर ले जाता। पीठ पर लादकर, भारी बोझे, वह चंद सिक्कों के लिए, एक मजदूर, कितना मजबूर हो जाता। ना सर्दी, ना गर्मी से घबराता। मजबूरी का, फायदा ठेकेदार उठाता। इतने पैसे नहीं…

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मैं मजदूर हूँ

हाँ, मैं मजदूर हूँ, बेबश हूँ, लाचार हूँ, बुझाने भूख पेट की, गालियाँ खाता, सिसकता भ्रष्टाचार हूँ। परिकल्पनाओं को तुम्हारी साकार मैं करता रहूँ, पय को तरसती अँतड़ी को आशाओं से भरता रहा। धर्म कोष को तुम्हारे हरदम बढ़ाता मैं…

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हम मेहनतकश

नसें हमारी उभड़ गयी, तन से बहता पानी है, हम मेहनतकश विश्व के यही हमारी निशानी है, खून-पसीना एककर हम चैन की रोटी खाते है, नहीं माँगते भीख किसी से अपने दम पर जीते हैं, मेहनत हमको सबसे प्यारी, मेहनत…

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हां! मै मजदूर हूं

संज्ञा में मै भूसा कपूर हूं! हां! मै मजदूर हूं मै भूखा सूखा रहता हूं पैदल ही चलता हूं आंधियों को सहता हूं पसीने में भीगता हूं फसलों को सींचता हूं दुबिधाएं ही लीपता हूं पास ही हूं, कहां दूर…

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