घरो में सुरक्षित रहना

कैसा ये वक्त आया कि हम सभी घर में ही रह रहें, सभी अपने अपने घरों में रहो ये हमारे प्रिय मोदी जी कह रहे कहते है जो जहां है वो वही रहे तो अच्छा होगा, जल्दी ही भारत का…

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कोरोना से जंग

कोरोना वायरस से छिड़ी हुई जंग शत्रु है शक्तिशाली अदृष्य और अनंग पूरी दुनिया को किया है तंग महाशक्तियाँ हुई है अवाक और दंग पूरी दुनिया पर कर रहा है वार इस के आगे सब लाचार सारे उपाय हैं बेकार…

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श्रद्धांजलि

रोटी भी ये क्या क्या नहीं करवाती है, कभी सड़क कभी पटरी पर ले जाती है। जीते जी ना मिल सकीं वो सुविधाएं, अब ये मृत देह हवाई जहाज से आती है। एक कटोरी दाल तक न मिल पायी, अब…

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मजबूरी मजदूरों की

हाय! कैसी है ये, मजबूरी मजदूरों की। अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए चले जाते है,परिवार से दूर ताकी कही मजदूरी कर, पाल सके, परिवारों का पेट। हाय! कैसी है? ये पेट की आग। जो मजदूरों को कर देती,अपनों…

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सुरा के सूर

जब से लॉक डाउन हो गया मेरा मन बेचैन हो गया। होगा कैसे व्यतीत ये क्षण कैसे कटेगे मेरे ये दिन।। सुरागार जब बंद हो गए जीवन कैसे चल पाएगा। किन्तु धीमे धीमे मंद गति से लॉक डाउन कट जाएगा।।…

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अब ना आयेगा

लाकडाउन मे जो लोग विभ्भिन परिस्थितियो में मारे गये लोगों को यह कविता समर्पित। ईश्वर उनकि आत्मा को शांति प्रदान करे। अन्धेरा छट जायेगा, सूरज जब उग आयेगा! दिपक भी जल जायेगा, उस मॉ को कौन समझायेगा? जिसका लाल अब…

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तन्हा रहना सीख लिया

इस लाॅकडाउन ने बहुत कुछ हम सभी को सिखा दिया है। तालाबंदी कठिन समय है लेकिन बहुत सहनशक्ति दे चुका है। यह सब हमारी बेहतरी के लिए ही है, कलमकार विजय कनौजिया जी कहते हैं कि इसने तो अकेला रहना…

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आत्म निर्भर बनना है

अब करना है, आत्म निर्भर बनने का प्रयास।। मत बैठो उन के भरोसे, जो करते है आप का उपहास।। अब करना है, आत्म निर्भर बनने का प्रयास।। दुख सुख के साथी बनो, अपनो को ले कर साथ।। जीना है खुद…

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प्रकृति का रौद्ररूप

मानव ने की प्रकृति से छेड़छाड़ जंगलों को दिया उजाड़ पेड़ पौधों से की खिलवाड़ खोल दिए विनाश के किबाड़ मात्र स्वार्थ के लिए अपना धर्म भूल गया मानवता को तज कर संस्कार भूल गया ईश्वरीय सत्ता को चुनौती दे…

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सहयोग

सबको करना चाहिए, सबका नित सहयोग। अपनी संस्कृति सभ्यता, कभी न भूलें लोग।। मानव गर करता रहे, मानव का सहयोग। भाग खड़े हों आपसी, सामाजिक सब रोग।। प्रेम दया सहयोग है, मानवता का मूल। चकाचौंध में उलझकर, कभी न इनको…

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वो दौर, ये दौर

नक़ाब शब्द ऐसा है जिसे आप अपनी शब्दावली में सजाकर मोहब्बती क़सीदे पढ़ते है वही दूसरी तरफ़ किसी के चरित्र की धज्जियाँ भीउड़ाते है। नक़ाब उस दौर में मतलब कोरोना त्रासदी से पूर्व और अब जब ये चरम पे है…

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कोरोना! तूने ये क्या किया

कोरोना! तूने ये क्या किया, पूरी दुनिया को अपनी उंँगलियों पर नचा दिया, अंहकारी व्यक्तियों को धूल चटा दिया, कोरोना तूने ये क्या किया। कोरोना! तूने ये क्या किया, दुनिया की शक्तिशाली देशों को उसकी औकात बता दिया, ज्ञान-विज्ञान की…

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कोरोना की मार है ऐसी

सुनी पड़ी गई सड़के सभी, और पड़ गई सुनी गलियां। कोरोना की मार है ऐसी, घर में दुबकी सारी दुनिया। मिलना-जुलना अब होता कम ही, होती ना अपनों की गलबहियाँ। हैंड-शेक से भला नमस्ते लगता अब तो, जब भी मिलते…

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मजदूरों की रोटियाँ

सोलह मजदूरों को ट्रेन से रौंद दिया जाना और उनका अपने घर ना पहुंच पाना, बहुत दर्दनाक व वीभत्स घटना है। जो भी देखा सुना, जाना, सबके रूह कांप गए। रात भर एक भयावह सपने की तरह सभी को परेशान…

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कितनी बुरी है मधुशाला?

कलमकार भरत कुमार दीक्षित रचित व्यंग्य और हास्य पर आधारित इन रचनाओं का उद्देश्य किसी को आहत करना नही है, महज़ इसे मनोरंजन के लिए पढ़े। १.) खुली हुई है मधुशाला बन्द पड़ी है पाठशालाएँ, खुली हुई है मधुशाला। टूटा…

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कोरोना सिखा गया

ये मौसम कोरोना का हमें बहुत सीखा गया। पूरे परिवार को एक साथ बैठना सीखा गया रामायण और महाभारत के संस्कार सीखा गया। स्वच्छ्ता के वो प्राचीन मापदंड याद दिला गया। बर्गर पिज्जा और चाउमीन से दूरी सीखा गया। प्रदुषण…

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चल दिये हैं पैदल

बड़ी खुद्दारी के साथ वो अपनी नन्ही सी बच्ची को कंधे पे बिठाये अपने गॉव के तरफ निकल पडा है। शहर से गॉव कि दूरी लगभग हजारो किलोमिटर होगी फिर भी वह चले जा रहा है । उसके पॉव के…

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रक्तरंजित रोटियाँ

पटरियों पे रक्तरंजित रोटियाँ, रोटियों संग पड़ी थीं बोटियाँ। थक गये क़दम मुसाफ़िरों के, झपकियाँ पटरियों पे सुला गईं। मुफ़लिसी फिर तितर-बितर हुई, घर पहुँचने की आरज़ू कुचल गई। चीत्कार चौखटें कई करने लगीं। दर्द के दामन में वीरानियां सोने…

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राष्ट्रधर्म- कोरोना के दौरान

विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत 'कोरोना' संकट का सामना कर रहा हैं । जिस धैर्य, संयम, अनुशासन, राष्ट्रप्रेम, दृढ़ इच्छाशक्ति व मजबूती से हम इससे निपट रहें हैं सम्पूर्ण विश्व 'भारत' का लोहा मान रहा हैं । आज…

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आहट

ये आहट कैसी है मृत्यु की, चारों तरफ हाहाकार मचा है। ये जो पसरा है सन्नाटा, क्या कोई मौत का पैगाम लाया है। कोई तन से हारा, कोई मन से हारा चला जो दो कदम वो फिर समाज से हारा।…

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