कोरोना की सीख
संघर्षों में जीना, मुश्किलों से लड़ना निराशा का आशा में बदलना पतझड़ में वसंत मनाना कोरोना ने सिखाया है। घरों में रहना, अपनों संग जीना बड़ो से सीखना, छोटों को सिखाना दुखों को बाँटना खुशियों को फैलाना कोरोना ने सिखाया…
संघर्षों में जीना, मुश्किलों से लड़ना निराशा का आशा में बदलना पतझड़ में वसंत मनाना कोरोना ने सिखाया है। घरों में रहना, अपनों संग जीना बड़ो से सीखना, छोटों को सिखाना दुखों को बाँटना खुशियों को फैलाना कोरोना ने सिखाया…
ये कैसा वक़्त आया है कोरोना संग लाया है, मना सड़को पर जाना है बना घर कैदखाना है,अजब अदृश्य दुश्मन है इसे मिलकर हराना है, रखकर हौसला हिम्मत हमें जंग जीत जाना है, सुरक्षित स्वमं को रखकर हमें सबको बचाना…
चीत्कार व सिसकियों के बीच में कुछेक किलकारियां भी सुनाई दे रही है जिन्हे पता ही नहीं है कि आधुनकि दुनिया में कोरोना वायरस तो प्राणों को लील ही रही है लेकिन कितने अपने भी है, जो सांप बिच्छू बनकर…
अपने ही बनाए जाल में, फँस रहा है आदमी। अपनों को ही नाग बनकर, डस रहा है आदमी। प्रकृति को हानि पहुँचाकर भूल रहा है मतवाला, अपनी ही सांसों पे शिकंजा कस रहा है आदमी। भौतिक सुख के पीछे ही…
खुले गॉव को छोड करआया था शहर, करने व्यापारतंग गलियो मे सिमट गया, सपनो का संसारकाम-धन्धा सब चौपट हुआछुट गया घर बार जब से फैला है महामारी का प्रसाररातो मे अब नीद ना आती गॉव कि चिन्ता मूझे सताती कैसे…
कलमकार महेश राठोर शहर के हालात का जिक्र कर रहे हैं, उन्होंने अपना अनुभव इस कविता में साझा किया है। इंसानो तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हरखामोशी की चादर में लिपटा है सारा शहर,सुनसान सी हर गली सुनसान सा…
पृथ्वी के घाव भर रहे हैंजी हाँसही सुना, आपनेपृथ्वी के घाव भर रहे हैंहाँ, वही घावजो उसे मनुष्य ने दिए थेअपनी अनगिनत महत्वाकांक्षाओं की तृप्ति के लिएअपनी अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिएअपने निर्मम स्वार्थ की सिद्धि के लिएअपनी बेशर्म…
सब कुछ एक व्यापार हैं सौदे को तैयार सब के बीच दलाल है क्रय विक्रय को तैयार सत्य बलि चढ़ जाता है असत्य खिलखिलाता है बातों में उलझाता है आगे बढ़ जाता है इस मंडी में भगवान बेचे जाते हैं…
आज सारा देश, कोरोना के कारण है, ख़ामोश। सहम सा गया है, प्रत्येक मानव का दिल वजह सिर्फ मानव और मानव की अभिलाषा। कभी वृक्षों को काट बनाते है, होटल, मकान, फैक्टरी तो कभी मासूम पशु-पक्षी को मार कर खाते…
तुम्हारी जीने की चाहत देखकर अच्छा लगा, तुम्हरा घर में यू डर कर कैद हो जाना अच्छा लगा, खुद को खुदा समझने वाले मौत की आहट सुनकर ही डर गए, तुम्हारा खुद को मर्द कहने पर थोड़ा भद्दा लगा, इंसानियत…
अब वक्त की है यही पुकार, भारत जाग, भारत जाग। लोभ लिप्सा में आकर जिसने विश्व को कर दिया बीमार। जिसकी धन लिप्सा ने इतने जख्म दिये धरती पर यार। जो कर रहा मानव जीवन का सौदा और अपना बढ़ाये…
पूरा विश्व कोरोना वायरस के कारण कठिन समय से गुजर रहा है। क्षेत्रों, राज्यों की सीमाएं बंद, स्कूल-कॉलेज बंद, यात्रा बंद और हम सभी अपने अपने घरों में बंद। भोजन, पानी अन्य साधनो की कमी, कोरोना ग्रसित लोगों की बढ़ती…
वो भी दिन थेक्या फिर से वो दिन आएगेंन हम यूँ ही घरों में रह जाएंगे।। वो भी दिन थेक्या फिर से वो दिन आएँगेअपनो से कभी हाथों में हाथ,कंधा में कंधा मिला के चल पाएँगे।। वो भी दिन थेक्या…
कोरोना रक्षक के हौसलों को तोड़ते ये सिरफिरे।देश के लिए नासूर बनते जाते ये सिरफिरे,इनकी कोई जाति नहीं, इनका कोई धर्म नहीं,जाति धर्म के नाम पर धब्बा लगाते ये सिरफिरे।दवा इलाज का बचाव का ईनाम ईट पत्थरों से देते ये…
आज महामारी के दौरान जबकि सभी नागरिक अपने घरों में क़ैद है और कुछ ना कुछ सुकून से है और जी रहे है और वही दूसरी तरफ देश की पुलिस,डॉक्टर,समाज सेवी आदि सुधि जन अनवरत सेवा भाव में लगकर कितनों…
कोरोना काल के बादऐसा कुछ हो जाएगा।आपस मे एक दूजे सेमिलने से कतराएंगे।सामाजिक कार्यक्रम भीअब बन्द हो जाएंगे।गली मोहल्ले बाजारों मेंअब भीड़ न हो पाएगी।होली दीवाली ईद सारेघर बैठ के ही मनाएंगे।ज़िन्दगी है जनाबछोड़ कर चली जायेगी ।मेज़ पर होगी…
बात है जरूरी बताना भी है जरूरीबना लो दो गज की दूरीरिस्ते है जरूरी मत बढाओ मन कि दूरीबना लो दो गज की दूरीडकोई बात हो मजबूरीनही जाना है जरूरीये जहान भी जरूरी ये जान भी जरूरीबना लो दो गज…
हे प्रकृति शक्ति-सौम्य रूपा, तुझको मेरा नमन, मेरा नमन! शमन अपनी शक्ति रौद्र रूपा, तुझको मेरा नमन, मेरा नमन! त्राहि त्राहि मचा हुआ है जगत में,विनाश हो रहा है जगत का शमन अपनी शक्ति रौद्र रूपा, तुझको मेरा नमन, मेरा…
ये कैसी लीला तेरी भगवन, कैसी ये घडी आई है।बेबस असहाय लगता मानव, कैसी ये महामारी छाई है।।जहाँ हैं वहीं रहने को, लोग हो गए हैं मजबूर।'कोरोना" ने अपनों को, अपनों से भी कर दिया है दूर।।सर्वशक्तिमान का दंभ भी,…
हे कलयुग! तुम्हारे राज़ में सभी कलयुगी क्यों है? तुम्हे नहीं पता? तब तो, खेदजनक बात है! हमारे ही बुजुर्गों ने ही तो कहा था! अन्याय होगा!अधर्म होगा! नहीं पता तुम्हे? बताता हूं, फिर सुनो!! लोग बाप पर हाथ उठाते…