प्रकृति अब खिल रही है
प्रकृति अब खिल रही है कैद करके हमें घरों में वो स्वतंत्र जी रही है कुछ अलग ही रौनक है अब पत्ते-पत्ते में, डाली-डाली में फूल भी खिलखिला रहें है भौंरे भी गा रहें हैं पंछी भी चहचहा रहे हैं…
प्रकृति अब खिल रही है कैद करके हमें घरों में वो स्वतंत्र जी रही है कुछ अलग ही रौनक है अब पत्ते-पत्ते में, डाली-डाली में फूल भी खिलखिला रहें है भौंरे भी गा रहें हैं पंछी भी चहचहा रहे हैं…
कैसा यह खेल है जो विधाता ने रचा है। विधाता का खेल तो देखिए कि आज इंसान घरों में कैद है और प्रकृति, पशु-पक्षी सब आजाद हैं। कहीं यह प्रकृति और विधाता का सम्मिलित खेल तो नहीं है, हम इंसानों…
प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता बहुत ही प्यारा है, इसे और मजबूत करने की आवश्यकता है। कलमकार सुमित सिंह तोमर बताते हैं कि किस प्रकार प्रकृति को क्षति पहुंच रही है, अनेक प्राणी तो विलुप्त होने के कगार पर हैं।…
कुदरत का तोहफा है कितना लाजवाब।आओ बैठे सोचे,हम मिलकर जनाब।।१।। हरे हरे पेड़ों की,हरी हरी टहनियाँ।जिस पर ये करते हैं,पंछी अठखेलियां।। दे रही है सबकुछ,सबको बेहिसाब।आओ बैठे सोचे,हम मिलकर जनाब।।२।। झर झर झरता है,झरनों का पानी।नदियों की कलकल,सुनाएं सुनो कहानी।।…