धुआँ

राजेश्वर प्रसाद जी लिखते हैं कि धुंआ जब भी उठता है वह कोई विनाश जरूर कर देता है। उठते धुएँ से किसी घटित अनहोनी की आशंका मन में आ ही जाती है। धुआँ, तू जब भी मेरे पास आएं हो…

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