कविताएं धुआँ राजेश्वर प्रसाद जी लिखते हैं कि धुंआ जब भी उठता है वह कोई विनाश जरूर कर देता है। उठते धुएँ से किसी घटित अनहोनी की आशंका मन में आ ही जाती है। धुआँ, तू जब भी मेरे पास आएं हो… 0 Comments March 23, 2020