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इस मन की पीर लिखूँ कैसे
मजबूर हुए मजदूरों की इस मन की पीर लिखूँ कैसे लाचारी बनी हुई सबकी लौटूँ घर-बार अभी कैसे। इस कोरोना का कहर हुआ और हाहाकार मचा ऐसे चल लौट चलें अपने घर को अब गाँव से दूर रहूँ कैसे। कैसी भी विपदा आती है सहना पड़ता है गरीबों को ऊपरवाले की झोली में नहीं मन…