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छोटा सा कोरोना
सहमी सी सुबह है, सूनी-सूनी शाम है गतिमान समय में, कैसा ये विराम है। दरवाजे बंद,नहीं खुलती हैं खिड़कियां सन्नाटा बोलता है, चुप-चुप हैं तितलियाँ। दौर कैसा आया, डरे-डरे शहर , ग्राम हैं सहमी सी सुबह है, सूनी -सूनी शाम है। लगता था बहुत बड़ा अपना, विज्ञान है संचित है कोष बड़ा, विश्वव्यापी ज्ञान है।…