मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र

है अद्भुत तेरी लीला प्यारी, जनता सुख, त्यागे सुकुमारी, सीता बिछड़े न राजधर्म, प्रभु शरण है दुनिया सारी, वन को जाय न अकुलानी, महल बिसराय हे कृपानिधानी, वन का राज सहज स्वीकारा, मुख पर सूरज तेज़ स्व-अभिमानी, विचरण कर वन…

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