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  • रंग लगाकर चला गया

    रंग लगाकर चला गया

    प्रेम और विरह अक्सर साथ-साथ होते हैं जैसे सिक्के के दो पहलू। कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की यह कविता पढें जो विरह की दशा संबोधित करती है। अपने प्रेम का रंग लगाकर जबसे मुझको चला गया वो सावंरिया कृष्ण कन्हैया अपने रंग में रमा गया। सुध-बुध विसरी मैं बांवरिया प्रेम रंग जो चढ़ा गया मुझे रमा…