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टूटकर बिखर गया
निराशा कभी-कभी हमारे मन पर हावी हो जाती है और हमें नई राह दिखाई ही नहीं देती है। कलमकार मुकेश ऋषि वर्मा की यह कविता पढें जो कहती है कि टूटकर बिखर गया। मैं टूटकर बिखर सा गया हूँ मैं रेत सा फिसल सा गया हूँ मांझी के भरोसे बैठा हूँ लेकर कश्ती बीच दरिया…