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  • तर्ज़-ए-तकल्लुम

    तर्ज़-ए-तकल्लुम

    इशारों-इशारों में बड़ी-बड़ी बातें हो जाया करतीं हैं। कलमकार रज़ा इलाही की एक गजल “तर्ज़-ए-तकल्लुम” पढ़िए। आँखों से कहे कोई, आँखों से सुने कोई दिल में उतरे कोई, दिल में समाए कोई बिन लब खोले जब सब कुछ कह जाए कोई ऐसे तर्ज़-ए-तकल्लुम में जब ग़ज़ल नई हो जाए कोई हुदूद-ए-अर्बा में सिर्फ और सिर्फ…