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रंग बदलती होली
वक्त के साथ-साथ त्यौहार मनाने के तरीके भी बदल रहे हैं। इसी बात को कलमकार रूपेन्द्र गौर ने एक व्यंगात्मक कविता में होली के त्यौहार को संबोधित करते हुए लिखा है। ना चेहरे का अपने रंग छुटा रहा हूँ, ना कपड़ों के अपने दाग हटा रहा हूँ। सच तो ये है कि मैं होली के दिन से ही, व्हाट्सएप के मेसेजेस मिटा रहा हूँ। अब नहीं घूमा करते हुरियारे गली गली,…