आलोक कौशिक की दस रचनाएँ

१) प्रकृति विध्वंसक धुँध से आच्छादितदिख रही सृष्टि सर्वत्रकिंतु होता नहीं मानव सचेतकभी प्रहार से पूर्वत्र सदियों तक रहकर मौनप्रकृति सहती अत्याचारकरके क्षमा अपकर्मों कोमानुष से करती प्यार आता जब भी पराकाष्ठा परमनुज का अभिमानदंडित करती प्रकृति तबअपराध होता दंडमान…

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शर्मशार

आलोक कौशिक की एक गज़ल पढ़ें जिसमें उन्होंने इंसानी फितरत का जिक्र किया है। शर्मिंदगी वाली हरकतों से सभी को बचना चाहिए। हमारा व्यवहार और विचार हमारे चरित्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मानव ही मानवता को शर्मसार…

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