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  • हो न हो

    हो न हो

    कलमकार सतीश शर्मा जीवन में घटने वाली अनेक परिस्थितियों और घटनाओं के अनुभव से यह कविता पूरी की है। कई आदमी रहते हैं यहां, हर एक शख़्स में। हो सकता है, बेहतर भी हो कोई बुरा भी हो। पाना है मंज़िल को किस्मत में ठोकरें भी हो। सभी से फांसला भी हो और हौंसला भी…