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सब बिक गए बाबू
समाज में फैली एक बुराई है- भ्रष्टाचार। कलमकार राजेश्वर प्रसाद जी की यह कविता पढ़ें जिसमें उन्होंने बहुत ही साधारण लहजे में एक सांकेतिक उदाहरण के माध्यम से अपने विचार वयक्त किए हैं। मैंने देखा एक बूढा़ कुम्हार को दिवाली की शाम डलिया भर मूर्ति लिए बैठा है चारों ओर लोग घेरे खड़े हैं। मैंने…