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पावन धरती
हे सुचित, पुलकित, हर्षित, मनभावन व पावन धरती।“मां” तुम ही सबके दु:ख दर्द को समय समय पे हरती।। सबके घर-द्वारे, अन्न-धन के, तुम ही भण्डार हो भरती।कृषक के कर्म की कल्पना को, तुम ही साकार हो करती।। गगन तुमसे, अग्नि तुमसे, है शीत मौसम-पानी तुमसे।तुमसे है अस्तित्व हमारा, है यह बुढ़ापा-जवानी तुमसे।। ऐसी असीम ममता…