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कलयुग मे बिखरता परिवार
इंसान वक्त के साथ खुद को ढाल लेता है किंतु सद्बुद्धि बनी रहे यह नहीं कहा जा सकता है। कलमकार दीपिका राज बंजारा ने अपनी इस कविता में कलयुग में बिखरते परिवार की चर्चा की है। साल बदला पर क्यों कोई बदलाव नहीं दिखता हैं, अपनों के बीच अब क्यों वो अपनापन नहीं दिखता हैं।आज…