मजदूर हम मजदूर

कभी छोटू, कभी रामू काका, तो कभी जमुना बाई, तो कभी पसीने से तर-बतर रिक्शा और ठेला खिंचते! कभी ऊँची ऊँची अट्टालिकाआओं पर अपने घरों का तामम भार उठाये! हाँ घर से कोसों दूर, कभी बेघर, तो कभी मजबूर, हाँ…

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