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  • तुम बिन

    तुम बिन

    कोई हमें इतना पसंद आ जाता है कि हम उसके बिना खुद को अधूरा सा महसूस करते हैं। कलमकार डॉ. राजेश पुरोहित शर्मा जी ऐसी ही स्थिति पर चंद पंक्तियाँ लिखी हैं। सावन भी पतझड़ सा लगता है तुम बिन। घर आंगन सूना सुना लगता है तुम बिन।। माथे को सहलाना और हमको समझाना। अब…