प्रकृति अब खिल रही है

प्रकृति अब खिल रही है कैद करके हमें घरों में वो स्वतंत्र जी रही है कुछ अलग ही रौनक है अब पत्ते-पत्ते में, डाली-डाली में फूल भी खिलखिला रहें है भौंरे भी गा रहें हैं पंछी भी चहचहा रहे हैं…

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