आलोक कौशिक की दस रचनाएँ

१) प्रकृति विध्वंसक धुँध से आच्छादितदिख रही सृष्टि सर्वत्रकिंतु होता नहीं मानव सचेतकभी प्रहार से पूर्वत्र सदियों तक रहकर मौनप्रकृति सहती अत्याचारकरके क्षमा अपकर्मों कोमानुष से करती प्यार आता जब भी पराकाष्ठा परमनुज का अभिमानदंडित करती प्रकृति तबअपराध होता दंडमान…

0 Comments

बनारस की गली में

बनारस की गली में हुए प्रेम को कलमकार आलोक कौशिक अपनी इस कविता में लिख रहे हैं। बनारस की गली मेंदिखी एक लड़कीदेखते ही सीने मेंआग एक भड़की कमर की लचक सेमुड़ती थी गंगादिखती थी भोली सीपहन के लहंगामिलेगी वो…

0 Comments