आओ हम भी मुसाफिर बन जाएँ

साकेत हिन्द स्वरचित चंद पंक्तियाँ आओ हम भी मुसाफिर बन जाएँ, इस मंज़िल-ए-ज़िंदगी के। आओ हम भी मुसाफिर हो जाएँ, इस दौर-ए-ज़िंदगी के।।   कोई और मिले या न मिले, हम-तुम हैं काफ़ी। करेंगें पूरा हम ज़रूर, सुहाने सफ़र ज़िंदगी…

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